विश्व पटल पर मिसाइलमैन के रूप में विख्यात भारतीय गणराज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रपतियों से एक भारत रत्न डॉ. अब्दुल कलाम आज शरीर छोड़ गये। शिलांग के आईआईएम में भाषण देते समय उन्हें हृदय आघात हुआ, उनके निधन की सूचना फैलते ही न सिर्फ भारत, बल्कि विश्व समुदाय गहरे शोक में डूब गया है। शिलांग से मिली जानकारी के अनुसार डॉ. अब्दुल कलाम को अस्पताल में 7 बजे के करीब भर्ती कराया गया। हालत गंभीर होने पर डॉक्टर ने उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया, लेकिन उनकी शरीर छोड़ने की इच्छा के समक्ष मशीनें और दवायें बेअसर साबित हुईं और वे विश्व को शोक के सागर में डुबो कर मुस्कराते हुए चले गये।
डॉ. अब्दुल कलाम 18 जुलाई, 2002 को प्रचंड बहुमत से भारतीय गणराज्य के राष्ट्रपति चुने गये, उनका कार्यकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ। डॉ. अबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम का जीवन सपनों जैसा है, उनके जीवन से जुड़ी एक-एक बात चकित करती है। तमिलनाडु के एक छोटे से तटीय शहर रामेश्वरम में 15 अक्टूबर 1931 को जन्मे और वहीं से अखबार बेच कर जीवन की शुरुआत करने वाले डॉ. कलाम का सम्मान विश्व का हर बड़ा व्यक्ति करता है। डॉ. कलाम के पिता बहुत कम पढ़े थे एवं मछुआरे थे व मछुआरों को नाव किराये पर भी दिया करते थे। पांच भाई और पांच बहनों के चलते परिवार की आर्थिक स्थित अच्छी नहीं थी, इसलिए शिक्षा जारी रखने के लिए डॉ. कलाम को अखबार बेचने पड़ते थे।
वैज्ञानिक बनने के पीछे डॉ. कलाम पांचवी कक्षा के अध्यापक सुब्रह्मण्यम अय्यर को प्रेरणा स्रोत बताते हुए कहते थे कि ‘वो हमारे अच्छे टीचर्स में से थे। एक बार उन्होंने क्लास में पूछा कि चिड़िया कैसे उड़ती है? क्लास के किसी छात्र ने इसका उत्तर नहीं दिया, तो अगले दिन वो सभी बच्चों को समुद्र के किनारे ले गए, वहां कई पक्षी उड़ रहे थे। कुछ समुद्र किनारे उतर रहे थे, तो कुछ बैठे थे, वहां उन्होंने हमें पक्षी के उड़ने के पीछे के कारण को समझाया, साथ ही पक्षियों के शरीर की बनावट को भी विस्तार पूर्वक बताया, जो उड़ने में सहायक होता है। उनकी वे बातें मेरे अंदर इस तरह समा गईं कि मुझे हमेशा महसूस होने लगा कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूँ और उस दिन की घटना ने मुझे जिंदगी का लक्ष्य निर्धारित करने की प्रेरणा दी, फिर मैंने तय किया कि उड़ान की दिशा में ही अपना कैरियर बनाऊं।
डॉ. कलाम 1962 में इसरो में पहुंचे, जहां प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में उन्होंने भारत को पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी- 3 दिया। 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के समीप स्थापित कर भारत को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बनाने में योगदान दिया, इसके बाद उन्होंने स्वदेशी गाइडेड मिसाइल को डिजाइन किया। अग्नि और पृथ्वी जैसी लोकप्रिय मिसाइलें भारतीय तकनीक से बनाईं। 1992 से 1999 तक वे रक्षामंत्री के रक्षा सलाहकार भी रहे, इस दौरान पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर टेस्ट किये गये, जिससे भारत परमाणु हथियार बनाने वाले देशों में शामिल हो गया। वे भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे।
डॉ. कलाम को 1982 में डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट लेबोरेट्री (डीआरडीएल) का डायरेक्टर बनाया गया, इस दौरान अन्ना यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया। स्वदेशी मिसाइलों के विकास के लिए कलाम की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई, जिसने पहले चरण में जमीन से जमीन पर मध्यम दूरी तक मार करने वाली मिसाइल बनाने पर जोर दिया। दूसरे चरण में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल, टैंकभेदी मिसाइल और रिएंट्री एक्सपेरिमेंट लॉन्च वेहिकल (रेक्स) बनाने का प्रस्ताव दिया। पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश, नाग नाम के मिसाइल बनाए गए। कलाम ने अपने सपने रेक्स को अग्नि नाम दिया। सबसे पहले सितंबर 1985 में त्रिशूल, फरवरी 1988 में पृथ्वी और मई 1989 में अग्नि का परीक्षण किया गया। इसके बाद 1998 में रूस के साथ मिलकर भारत ने सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने पर काम शुरू किया और ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की गई। ब्रह्मोस को धरती, आसमान और समुद्र कहीं भी दाग सकते हैं, इस सफलता के साथ ही डॉ. कलाम मिसाइल मैन बन गये। 1981 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में भारत रत्न प्रदान किया। इतना सब पाने और करने के बावजूद वे निरंतर सक्रीय रहते थे और मृत्यु की दुःखद घटना के बीच सुखद बात यह है कि वे अपने अंतिम क्षणों में भी कार्य कर रहे थेे। पूरी गर्मजोशी के साथ न सिर्फ शिलांग पहुंचे थे, बल्कि उससे पहले उन्होंने ट्वीट भी किया था, जो उनका अब अंतिम ट्वीट बन गया है। उनकी महानता कर्म और विचार दोनों से सिद्ध होती है, उन्होंने कहा था कि मेरी मृत्यु के दिन अवकाश मत करना। अगर, मुझसे प्रेम करते हो, तो अतिरिक्त कार्य करना … ऐसे डॉ. कलाम को बार-बार नमन।