दुनिया भर में हर समाज हर क्षेत्र में निरंतर विकास करता है, सुधार करता है, लेकिन भारत ऐसा देश है, जो कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अवनति कर रहा है, निरंतर गर्त में जा रहा है। बात अखिल भारतीय सेवाओं की करें, तो आईएएस संवर्ग की देश भर में विशेष प्रतिष्ठा है। आईएएस संवर्ग की विशेष प्रतिष्ठा वेतन, सुख-सुविधाओं और शक्ति के कारण नहीं, बल्कि देश और समाज की सेवा करने का बड़ा अवसर मिलने के कारण है, इस सेवा में कार्यरत लोगों के सगे-संबंधियों तक को संपूर्ण समाज विशिष्ट दृष्टि से देखता रहा है। युवक-युवतियों की कैरियर संबंधी सोच हाई स्कूल में आने पर जागृत होती है, तभी अधिकांश युवक-युवतियां सर्वाधिक प्रतिष्ठित दायित्व संभालने का सपना देखने लगते हैं।
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में कंपनी के निदेशकों द्वारा चयन किया जाता था। चयनित लोगों को इंग्लैंड के लंदन में स्थित हेलीबरी कॉलेज में भेज दिया जाता था, जहाँ से प्रशिक्षण लेने के बाद भारत में तैनात कर दिया जाता था। मैकाले की रिपोर्ट के बाद लंदन में सिविल सेवा आयोग की स्थापना हुई, जिसके बाद प्रतियोगी परीक्षा होने लगी, लेकिन परीक्षा लंदन में ही आयोजित की जाती थी और प्रश्न भी भारत से संबंधित नहीं होते थे, इसके बावजूद रविन्द्रनाथ ठाकुर के भाई सत्येन्द्रनाथ ठाकुर ने पहली बार परीक्षा उत्तीर्ण कर भारत का डंका बजा दिया। सिविल सेवा आयोग का नाम बदल कर बाद में फेडरल लोक सेवा आयोग कर दिया गया, जिसकी जगह 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होते समय संघ लोक सेवा आयोग ने ले ली, तब से आयोग नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, ऐसे-ऐसे अधिकारी देता रहा है, जो भारत की प्रतिष्ठा दुनिया भर में बढ़ाते रहे हैं।
ज्ञानी को सर्वोच्च सम्मान मिलता है। ज्ञान व्यक्ति के अंदर पल रहे जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और परिवारवाद का नाश कर वैश्विक और मानवीय सोच प्रदान कर आदर्श नागरिक बनाता है। आईएएस बनने का आशय यह भी होता है कि व्यक्ति ज्ञानी है, इसीलिए आईएएस को सर्वोच्च सम्मान दिया जाता है। आईएएस टॉपर को संपूर्ण समाज महाज्ञानी मानता है, इसीलिए विकास कार्यों को गति देने के साथ नई योजनाओं का निर्माण करना, शोषित और पीड़ित वर्ग को सुरक्षा घेरा प्रदान करना एवं संविधान की रक्षा करने का महत्वपूर्ण दायित्व आईएएस वर्ग को ही दिया गया है, लेकिन पिछले दो-ढाई दशक से आईएएस संवर्ग की प्रतिष्ठा भी निरंतर धूमिल हो रही है, जिन पर देश को संभालने और आगे बढ़ाने का दायित्व था, वे ही भ्रष्टाचार के दल-दल में गले तक डूबे दिख रहे हैं, इससे भी बड़े दुःख की बात यह है कि सर्वाधिक बौद्धिक वर्ग कहे जाने वाले आईएएस अफसर चिंतित भी नजर नहीं आ रहे हैं।
युवक-युवतियां आईएएस अफसरों को राजनेताओं की गुलामी करते हुए अपनी आँखों से देख रहे हैं, जिससे नये दौर के युवक-युवतियों में आईएएस बनने की ललक नहीं दिख रही, क्योंकि टॉपर अखंड प्रताप सिंह बीज घोटाले में जेल जा चुके हैं, टॉपर प्रदीप शुक्ला एनआरएमएम घोटाले में जेल जा चुके हैं, टॉपर ललित वर्मा फंस चुके हैं, नीरा यादव, के. धनलक्ष्मी, सदाकांत, बलजीत सिंह लाली, संजीव सरन, पंधारी यादव और राकेश बहादुर जैसे तमाम उदहारण हैं, जो प्रतिष्ठित सेवा को कलंकित कर चुके हैं। हाल ही में विजिलेंस ने प्रदेश सरकार को ऐसे अफसरों की सूची सौंपी है, जो भ्रष्टाचार में संलिप्त रहे हैं, इस सूची में 54 आईएएस अफसर बताये जा रहे हैं, इसी तरह केंद्र सरकार ने पिछले दिनों भ्रष्ट अफसरों के विरुद्ध कार्रवाई की, जिनमें 24 आईएएस अफसर थे।
स्वतंत्रता से पहले और स्वतंत्रता के बाद आईएएस अफसरों की जो प्रतिष्ठा थी, वह और ऊपर जानी चाहिए थी, लेकिन दुनिया ने हर क्षेत्र में विकास किया, पर आईएएस ज्ञानी होते हुए भी गर्त में चले गये, इसीलिए समाज और देश भी यथा-स्थान प्राप्त नहीं कर पाया। कुछेक अफसर तर्क देते हैं कि आईएएस अफसरों का राजनेताओं की कठपुतली बनना मजबूरी है, यह तर्क सिद्ध करता है कि आत्मा पूरी तरह मर चुकी है, क्योंकि स्वयं के भ्रष्ट होने की बात को राजनेताओं की आड़ में दबाने का प्रयास किया जा रहा है।
लोकतंत्र में सर्वोच्च कार्य है चुनाव, जो सिर्फ आईएएस ही कराते हैं। अगर, आईएएस कर्तव्य को सर्वोपरि रखें, तो राजनीति में आचरणहीन व्यक्ति प्रवेश ही नहीं कर पायेंगे, पर व्यक्तिगत आकाँक्षाओं को पर लग जाने के कारण आईएएस अफसरों को समाज की दुर्गति, शोषित वर्ग और देश दिखना ही बंद हो गया है। याद रखें कि आईएएस नौकरी नहीं है, ईश्वर ने प्रारब्ध के चलते सर्वोच्च दायित्व देने के लिए आपको चुना है, जिस पर खरा न उतरना ईश्वर के निर्णय को गलत सिद्ध करने जैसा है, जो अक्षम्य अपराध है, जिसके लिए इस लोक और परलोक में भयानक दंड मिलना सुनिश्चित है, इस दंड से बचना है, तो प्रशिक्षण से मिले ज्ञान का सर्वोच्च प्रदर्शन करिये। त्याग दीजिये पोस्टिंग का मोह और अर्जुन की तरह सिर्फ संविधान को देखिये, नेता, मंत्री और सरकार एक को हटायेगी, तो दूसरा भी वही करेगा, जो पिछले वाला अफसर कर रहा था। नियम से चलेंगे, तो सब एक समान ही दिखने लगेंगे, फिर नेताओं, मंत्रियों और सरकारों का दबाव स्वतः समाप्त हो जायेगा। समाज आगे बढ़ने लगेगा, देश आगे बढ़ने लगेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि खोई हुई प्रतिष्ठा वापस मिल जायेगी। एक आपके सही हो जाने से और भी बहुत कुछ सही हो जायेगा। अपने लिए न सही आने वाली पीढ़ियों के लिए सही हो जाईये … प्लीज।
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