उत्तर प्रदेश में फसल एवं मौसम के परिपे्रक्ष्य में किसानों को दिए गये सुझाव के अनुसार गेहूॅं की कटाई के बाद फसल अवशेष को कदापि न जलायें, बल्कि इसे खेत में सड़ाकर मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाये। गेहॅूं के अवशेष को सड़ाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर 5 टन प्रति हे. की दर से गोबर की खाद डालें। गोबर की खाद उपलब्ध न हो तो 20 किग्रा. प्रति हे. अतिरिक्त नत्रजन अथवा 2.5 किग्रा. प्रति हे. ट्राईकोडरमा बिरडी को मिट्टी या बालू में मिलाकर जुताई से पहले खेत में डालकर मिला दें। उर्द, मूॅंग, सूरजमुखी की फसलों एवं लीची व आम के बागों में पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। धान की रोपाई वाले प्रक्षेत्रों में हरी खाद के लिए सनई एवं ढैंचा की बुआई करें। सभी जनपदों में कृषि विभाग के गोदामों पर ढैंचा का बीज उपलब्ध हैं।
उ.प्र. कृषि शिक्षा अनुसंधान परिषद में आयोजित फसल सतर्कता समूह के कृषि वैज्ञानिकों की बैठक में बताया गया कि किसानों को मौसम के अनुरूप दी गई सलाह के अनुसार ब्लाक स्तर पर खरीफ फसलों के संकर बीजों की खरीदारी हेतु मेले का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें सभी बीज विक्रेता अपने स्टाॅल लगाएंगे। कृषक फसलों के बीज यहाॅं प्राप्त कर सकते हैं। बीज की सब्सिडी हेतु कृषक को रसीद के साथ जिला कृषि अधिकारी से संपर्क करना होगा। सब्सिडी की रकम 10 दिनों में खातों में स्थानान्तरित होगी। कृषकों द्वारा इस मेले के लिए 26 मई तक पंजीकरण कराया जा सकता है। खरीफ 2015 के लिए फसलों के बीमा कराने की अवधि संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना में 1 अप्रैल से 31 जुलाई व मौसम आधारित फसल बीमा योजना में 1 अप्रैल से 30 जून, 2015 तक है। अतः मौसम की अनिश्चितताओं को देखते हुए कृषकों को चािहए कि वे अपनी फसलों का बीमा अपने नजदीकी सहकारी या व्यावसायिक बैंकों के माध्यम से अवश्य करायें।
कृषि विभाग द्वारा चलायी जा रही पारदर्शी किसान सेवा योजना के अंतर्गत कृषि निवेश, कृषि यंत्र, बीज, कृषि रसायनों को प्राप्त करने हेतु किसान अपना रजिस्ट्रेशन अवश्य कराएॅं। रबी फसलों में नुकसान की भरपाई हेतु कृषकों को सलाह दी जाती है कि वह कुक्कुट पालन, बकरी पालन तथा भेड़ पालन, भैंस पालन करें, इससे उनकी अतिरिक्त आय होगी। कृषकों को सलाह दी जाती है कि वह जैव कीटनाशकों का प्रयोग करें। जैव कीटनाशकों पर कृषि विभाग द्वारा 75 प्रतिशत का अनुदान दिया जा रहा है।
उधर गन्ना संस्थान में बताया गया कि प्रदेश में गन्ने के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने के लिये जरूरी है कि बेहतर टेक्नालाॅजी को अपनाया जाये। इसके लिये कृषि वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों को आगे आकर ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी, जो गन्ने की खेती को किसानों के लिये और अधिक लाभकारी बना सके और साथ ही औद्योगिकी दृष्टि से भी यह खेती फायदेमन्द साबित हो सके।
यह विचार आज यहां गन्ना संस्थान में ‘‘गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग: वर्तमान चुनौतियां एवं विकल्प’’ विषय पर आयेाजित एक दिवसीय कार्यशाला को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुये प्रमुख सचिव, गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग, राहुल भटनागर ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार द्वारा खेती और किसान के विकास से जुड़े कार्यों को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया गया है और इस दिशा अनेक कार्यक्रम और योजनायें चलायी जा रही हैं। किसानों को उनकी गन्ना उपज का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित कराने के साथ-साथ उनके बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान भी प्राथमिकता के साथ किया जा रहा है।
श्री भटनागर ने कहा कि को-जेनेरशन से इण्टस्ट्री को काफी राहत मिली है। जरूरत इस बात की है कि को-जेनेरशन को और अधिक प्रोत्साहित किया जाये। उन्होंने ब्राजील का उदाहरण देते हुये कहा कि चीनी उत्पादन बढ़ने से वहां एथेनाॅल का उत्पादन भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह उत्पाद आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है। इसी प्रणाली को यहां भी अपनाने पर विचार कर लागू किया जाना जरूरी है। ऐसा करने से गन्ना किसानों और चीनी उद्योग दोनों का ही भला होगा। कार्यशाला को कृषि वैज्ञानिकों और गन्ना विकास कार्य से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने भी सम्बोधित किया।