हम बहुत गरीब आदमी हैं, हमारो बच्चा गंगा मैय्या में डूब गओ, कमऊआ पूत मर गओ। हमने प्रधान से लेकर सांसद तक और लेखपाल से लेकर डीएम तक से गुहार लगाई, लेकिन हमारी काऊ ने न सुनी। हम सांसद जी से फिर कह रहे हैं कि वे हमारी मदद करा दें।
उक्त दुःख और दर्द बदायूं जिले के थाना कादरचौक में स्थित गाँव गरौलिया निवासी लालाराम का है। लालाराम का जवान बेटा 31 जुलाई 2015 को गंगा में डूब गया और मर गया, वह परिवार का भरण-पोषण करता था, जिससे पूरा परिवार ही तबाह हो गया। बेटे की मौत से टूट चुका पिता लालाराम पहले दिन से आर्थिक सहायता पाने के लिए दौड़ रहा है, वह प्रधान से लेकर सांसद तक का द्वार खटखटा चुका है, वह लेखपाल से लेकर डीएम तक के सामने गिड़गिड़ा चुका है, लेकिन उसका दुःख और दर्द किसी को महसूस नहीं हुआ।
लालाराम की गुहार पर क्षेत्रीय विधायक आशीष यादव ने भी सांसद को पत्र लिखा, पर उनका पत्र भी रद्दी की टोकरी में चला गया, उसे यह तक कोई नहीं बता रहा कि उसे आर्थिक मदद मिलेगी, या नहीं? एक बार उसे स्पष्ट बता दिया जाये कि उसे आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी, तो दुर्भाग्य के सहारे वह जीवन गुजार लेगा।
असलियत में सांसद धर्मेन्द्र यादव स्वयं लाखों लोगों से नहीं मिल सकते और न ही लाखों लोग उन तक पहुंच सकते हैं। बदायूं में उनका प्रतिनिधित्व विपिन यादव और अवधेश यादव करते हैं, जो बेहद लापरवाह हैं, इन दोनों के बारे में यह बात आम है कि आम जनता का यह फोन ही नहीं उठाते, साथ ही कोठी पर भी शाही अंदाज में रहते हैं। सांसद को जितना अहंकार नहीं है, उससे ज्यादा इन दोनों को है। आम जनता इनसे मिलने के लिए भी कई-कई घंटे इंतजार करती रहती है। इनके बारे में और भी कई तरह की चर्चायें आम हो चुकी हैं, जो शायद अभी सांसद तक नहीं पहुंची हैं, इन दोनों की छवि जनता के बीच लगातार खराब हो रही है, जिसका दुष्परिणाम सांसद को भी झेलना पड़ सकता है।
लालाराम जैसे लाखों लोग हैं, जो सांसद से मिलने दिल्ली नहीं जा सकते। सांसद जिले में होते हैं, तो उनके जिले में घुसने से पहले आसपास के जिलों के हजारों लोग आ चुके होते हैं, साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिधि और अफसर मिलते हैं, लेकिन हालात भयावह चमचों ने बना रखे हैं, जो बेवजह सांसद के बेडरूम तक हावी रहते हैं और उन्हें चौबीस घंटे घेरे रहते हैं, इससे आम जनता पीछे छूट जाती है। आम जनता की सेवा करने का दायित्व अवधेश यादव और विपिन यादव का है, लेकिन यह लोग उस कार्य को भी गंभीरता से नहीं लेते, जिसे सांसद स्वयं कहते हैं, इसीलिए आम आदमी त्रस्त नजर आ रहा है।
यहाँ यह भी बता दें कि धर्मेन्द्र यादव के सांसद बनने से पहले जनता की सेवा करने में विधायक ही सक्षम थे, लेकिन उनके सांसद बनने के बाद विधायकों की यहाँ कोई नहीं सुनता। छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े अफसरों तक सिर्फ सांसद की ही बात गंभीरता से सुनी जाती है। अगर, सांसद ने सिफारिश नहीं की है, तो काम नहीं होगा, इसलिए विधायक भी अपने काम सांसद को बताते हैं। अब वाया सांसद ही काम होते हैं। विधायक सांसद के समक्ष ऐसे कार्यों को पहुंचाते हैं, जिनमें उनका निजी स्वार्थ भी हो, ऐसे में आम जनता का त्रस्त होना स्वाभाविक ही है।
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