बायोमीट्रिक के साथ अन्य तमाम शंकाओं को दरकिनार कर सिर्फ भ्रष्टाचार पर ही ध्यान दें, तो आधार कार्ड निराधार ही साबित होगा, क्योंकि भ्रष्टाचार मिटाने को न तंत्र तैयार है और न ही आम जनता। भ्रष्टाचार दोनों पक्षों की सुविधा का माध्यम बन गया है, इसलिए भ्रष्टाचार को तंत्र की मौखिक और समाज की आम स्वीकृति मिल गई है। भ्रष्टाचार नियम-कानून और सिर्फ आधार जैसे कार्ड से नहीं, बल्कि नैतिकता से समाप्त होगा, जिसकी कहीं कोई चर्चा तक नहीं हो रही है।
मतदाता पहचान पत्र का नियम बनाते समय भी ऐसे ही कुछ तर्क दिए गये थे। दावा किया गया था कि पहचान पत्र से चुनाव में होने वाली बेईमानी पर अंकुश लग जायेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। जो सुधार हुआ है, उतना समय के साथ होना स्वाभाविक ही था। हालाँकि अभी तक पहचान पत्र अनिवार्य नहीं किया गया है, लेकिन मतदान करने के लिए वैकल्पिक आईडी अनिवार्य की जाती रही है, जो पहचान पत्र अनिवार्य करने जैसा ही है, इसके बावजूद चुनाव में बेईमानी करने के और नये तरीके इजाद कर लिए गये हैं, जिन पर रोक लगाने में पहचान पत्र पूरी तरह निष्प्रभावी साबित होता रहा है, ऐसे ही दावे अब आधार कार्ड को लेकर किये जा रहे हैं।
आधार कार्ड के कई लाभ बताये जा रहे हैं, साथ ही सरकार की ओर से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का दावा किया जा रहा है, जो असभंव नजर आ रहा है, जबकि वर्तमान में देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार ही है। आधार कार्ड अनिवार्य करने के कई सारे लाभ होंगे भी, लेकिन भ्रष्टाचार के लिए आधार निराधार ही साबित होगा, क्योंकि वर्तमान में भी राज्य सरकारें कई योजनाओं का धन सीधे पात्रों के बैंक खाते में देती हैं, इसके बावजूद पात्रों से उतनी ही उगाही आज भी हो रही है, जितनी पहले होती थी।
उत्तर प्रदेश सरकार वृद्धा, विधवा, किसान और समाजवादी पेंशन के साथ इंदिरा और लोहिया आवास जैसी योजनाओं का धन सीधे पात्रों के बैंक खाते में देती है। भ्रष्टाचार धन का वितरण करने में नहीं था। भ्रष्टाचार पात्रों का चयन करने में था, जो अब भी है। नियमानुसार पात्रों का चयन गाँव सभा की खुली बैठक में होना चाहिए, लेकिन गांवों में बैठकें होती ही नहीं हैं। ग्राम पंचायत विकास अधिकारी और प्रधान फर्जी कार्रवाई लिख कर उन व्यक्तियों का चयन कर लेते हैं, जिनसे उन्हें रिश्वत मिलती है। निश्चित हिस्सा लेकर खंड विकास अधिकारी सूची को संस्तुति सहित जिला मुख्यालय भेज देते हैं और अपना निश्चित हिस्सा लेकर जिला स्तरीय अधिकारी स्वीकृति प्रदान कर देते हैं। जिला स्तरीय अधिकारियों की स्वीकृति के बाद पात्रों के बैंक खातों में धन भेज दिया जाता है। इस व्यवस्था से गरीबों को और अधिक नुकसान हुआ है, क्योंकि नकद रूपये मिलने पर प्रधान, वीडियो सहित तमाम बाबू, अफसर आदि उसी समय अपना हिस्सा लेते थे, लेकिन अब गरीबों को रिश्वत एडवांस देनी पड़ती है।
पात्र अधिक हैं और सुविधा कम है, ऐसे में किसी भी योजना का लाभ लेने के लिये पात्रों में मारामारी होगी ही, इसलिए मारामारी रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए। जैसे सरकार आर्थिक गणना भी कराती है। आर्थिक गणना के अनुसार गाँव, ब्लॉक, तहसील, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सरकार स्थाई सूची जारी कर यह नियम बना दे कि सूची के अनुसार पात्रों को लाभ दिया जायेगा। वरीयता क्रम के अनुसार प्रतिवर्ष उस सूची में से पात्र स्वतः ले लिए जायें और उन्हें लाभान्वित कर दिया, इसी तरह आने वाले वर्षों में लगातार चयन किया जाये, इससे पात्रों के चयन में होने वाला भ्रष्टाचार समाप्त किया जा सकेगा, क्योंकि पात्रों को पहले से ज्ञात होगा कि इस वर्ष उनका चयन होगा, अथवा नहीं होगा और जब पात्रों को ज्ञात होगा, तो कोई पात्र रिश्वत नहीं देगा।
इसके अलावा भ्रष्टाचार को समाप्त करने का दूसरा तरीका नैतिकता है, इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं है। वर्तमान में रिश्वत लेना और देना, न पाप माना जाता है और न अपराध। भ्रष्टाचार सुविधा देने और सुविधा पाने का सर्वोत्तम माध्यम बन गया है, इसीलिए रिश्वतखोर को आज अधिकांशतः परिजन भी बुरा नहीं कहते। समाज का एक बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार को बड़ी समस्या तो मानता है, साथ ही भ्रष्टाचार को टैलेंट भी कहता है। चूँकि व्यक्ति की तरक्की का पैमाना सिर्फ रूपया बन गया है, इसलिए समाज अब व्यक्ति के रूपये पर ही ध्यान देता है, उस व्यक्ति ने रूपये कैसे जुटाये हैं, इस ओर न किसी का ध्यान जाता है और न ही समाज ध्यान देना चाहता है। समाज के इस बदले नजरिये का रिश्वतखोर सीधा लाभ उठा रहे हैं। एक-डेढ़ दशक पूर्व तक कम आमदनी, या कम वेतन वाला व्यक्ति बड़ा घर, गाड़ी वगैरह खरीदता था, तो उसके परिचित उससे यह कहते हुए दूरी बना लेते थे कि हमारे परिवार पर बुरा असर पड़ेगा, लेकिन अब बड़े बंगले और कीमती कार वाले से लोग आगे बढ़ कर रिश्ता बनाना चाहते हैं।
दुःखद और भयानक पहलू यह है कि बच्चों के आदर्श बदल गये हैं, उनके पिता अच्छे स्कूल, कॉलेज, कोचिंग सेंटर में पढ़ा पा रहे हैं और हर महीने हर तरह के शौक पूरा करने को रूपये दे पा रहे हैं, तो उनके पापा बेस्ट हैं और यह सब नहीं कर पा रहे हैं, तो ईमानदार होते हुए भी उनके पापा फेलियर हैं। बच्चों में यह सोच बदली शिक्षा प्रणाली के चलते आई है, उन्हें आदर्श और नैतिकता के मायने नहीं पता, अथवा उनके लिए मायने बदल गये हैं। उनके लिए बाजार की मस्ती का नाम ही जीवन रह गया है और बाजार में मस्ती सिर्फ रूपये से मिलती है, सो जीवन का लक्ष्य सिर्फ रुपया बन गया है, अब रुपया कैसे आ रहा है, यह वे सोचते ही नहीं हैं।
सरकार को शिक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। शून्य से लेकर इंटर तक नैतिक शिक्षा अनिवार्य करनी होगी, इससे न सिर्फ भ्रष्टाचार, बल्कि देश को हर दिशा में सीधा लाभ मिलेगा। नियम और कानून के साथ नैतिक शिक्षा बेहद आवश्यक है, क्योंकि सिर्फ कानून से बदलाव आ जाता, तो आज सड़क हादसे न हो रहे होते। 21वीं सदी की स्त्री छेड़छाड़ का शिकार न हो रही होती, यह सब नैतिक शिक्षा दिए बिना रोक पाना असभंव है।