जयराम रमेश परेशान हैं कि शौचालय अनाज भंडारण के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं। उनकी परेशानी जायज़ है। निश्चित ही शौचालय इस देश की बड़ी समस्या हैं। मुंह अंधेरे उठकर अकेले जंगल जाने पर महिलाओं की सुरक्षा को सबसे अधिक खतरा होता है। वह और जगहों की तरह न तो किसी पुरुष को साथ ले जा सकती हैं और न ही खुलकर किसी को बता सकती हैं। गांवों में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में अधिकांश इसी समय के होते हैं। पर सोचने की बात यह है कि यह वह देश है जहां किसी स्थान को शौचालय का नाम दे दिया जाये तो व्यक्ति वहाँ से लौटकर पहले स्नान करता हैं। उससे पहले वह किसी से बात तक नहीं करता, कुछ खाना-पीना तो दूर की बात है। ऐसे में उसी अपवित्र शौचालय (भले ही नाम का हो) में लोग अनाज रख रहे हैं तो सोचिये कितने मजबूर होंगे वे। किसान साल भर मेहनत करके अनाज उगाता है कि बच्चों का पेट भर सके, पत्नी का तन ढँक सके। भरी दोपहरी में खड़ा होकर कटाई करता है कि बारिश उसे खराब न कर दे। ऐसे में जब वह अनाज के ढेर को सड़ते हुए देखता है तो उसके दुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उस गरीब की झोंपड़ी में तो इतनी जगह भी नहीं कि घर के सब लोग पाँव फैलाकर सो सकें। इन सब चिंताओं के बीच शौचालय जैसी चीज़ के बारे में मोंटेक सिंह अहलूवालिया ही सोच सकते हैं, गाँव का आम आदमी नहीं। इस गरीब देश में जहां प्रतिदिन लाखों लोग भूखे सोते हैं, जब अनाज सड़ता है तो उससे अधिक वीभत्स दृश्य दूसरा कोई नहीं होता। शौचालय आवश्यक हैं, लेकिन अनाज के गोदाम भी आवश्यक हैं। शौचालय खाली कराने के लिए जब अनाज निकाला जाये तो उस गरीब किसान को भी सोचा जाए जो साल भर फसल पकने के इंतज़ार में रहता है। यहाँ सवाल उठ रहा है कि शौचालय ज़्यादा जरूरी है या अनाज का भंडारण? यह बिलकुल वैसा ही है जैसे पूछा जाए कि, पानी चाहिए या सांस? दोनों चाहिए, और संसाधन की कोई कमी नहीं कि दोनों न दिये जा सकें। कमी सिर्फ मैनेजमेंट की है, जो कब दूर होगी कहा नहीं जा सकता।
Share on Facebook
Follow on Facebook
Add to Google+
Connect on Linked in
Subscribe by Email
Print This Post