- पांडवों और कौण्डिन्य मुनि ने किया था यह व्रत
धार्मिक मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान विष्णु अगर, प्रसन्न हो जायें, तो व्रती को खोया धन, वैभव, पद और प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त हो जाती है। यह व्रत सतयुग से रखने की परंपरा है। जुए में सब कुछ हारने के पश्चात पांडवों ने श्री कृष्ण के कहने पर वनवास में इस व्रत को रखा था और भगवान विष्णु के आशीर्वाद के चलते उन्हें पुनः सब कुछ मिल गया था।
अनंत चतुर्दशी से जुड़ी कथा सतयुग की है। कहा जाता है कि सुमन्तु मुनि की बेटी शीला इस वर्त को करती थीं। बाद में उनका विवाह कौण्डिन्य मुनि से हो गया, तो भी उन्होंने व्रत नहीं छोड़ा। एक बार शीला के हाथ में बंधे अनंत सूत्र पर कौण्डिन्य की दृष्टि पड़ गई, तो उन्होंने शीला से सवाल किया कि हाथ में यह क्या बांधे हैं?
शीला ने अनंत सूत्र और व्रत के बारे में बताया, तो कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी शीला के हाथ से अनंत सूत्र खुलवा कर अग्नि में भस्म कर दिया, इसके बाद वैभवशाली कौण्डिन्य निर्धन हो गए। दीन-हीन होने के बाद उन्हें अपने अपराध का अहसास हुआ और प्रायश्चित करने लगे। तत्पश्चात श्रद्धा पूर्वक उन्होंने चौदह वर्षों तक अनंत व्रत का पालन किया, तो भगवान विष्णु प्रसन्न हो गये और उन्हें क्षमा कर दिया, इसके बाद कौण्डिन्य को पुनः ऐश्वर्य मिल गया।
मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी के दिन प्रातः काल स्नान कर व्रत का संकल्प लें और फिर स्वच्छ स्थान पर कलश स्थापित करें। कलश के समक्ष ही भगवान विष्णु का चित्र रखें, इसके बाद धागे में चौदह गांठें लगा कर अनंत सूत्र बना कर चित्र के समक्ष रख दें। षोडशोपचार-विधि से भगवान विष्णु और अनंत सूत्र का पूजन करें। ॐ अनंतायनमः मंत्र का जाप करते हुए अनंत सूत्र धारण करें। संध्या काल से पूर्व भूखे ब्राह्मण को भोजन करायें और प्रसाद वितरण के पश्चात स्वयं भी भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर मीठा भोजन ग्रहण करें।
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहते हैं। धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह तिथि कल 18 सितंबर को ही है।