अंगुलियों के उद्गम स्थान पर ग्रहों का निवास होता है और उस स्थान को वलय या पर्वत कहा जाता है। पर्वतों की ऊंचाई के आधार पर ही व्यक्ति की प्रकृति का निर्णय हो जाता है। जो पर्वत अधिक उठा होगा उस पर्वत का स्वामी ग्रह व्यक्ति पर प्रभावी रहेगा। तर्जनी: अंगूठे के पास वाली अंगुली को तर्जनी अंगुली कहते हैं और इस अंगुली के उद्गम पर बृहस्पति ग्रह का निवास होने से इसे बृहस्पति की अंगुली कहा जाता है। गुरू ग्रह का संबंध ज्ञान एवं प्रशासन से है। आपने देखा होगा की इशारों से दिये जाने वाले अधिकांश आदेश इसी अंगुली से दिये जाते हैं। मध्यमा: हाथ में मध्यमा अंगुली सभी अंगुलियों से थोड़ी बड़ी होती है। इसके उद्गम स्थान पर शनि ग्रह का निवास होता है। यह व्यक्ति को धीर, आलसी, कठोर और सेवभावी बनाता है। अनामिका: इस अंगुली के उद्गम स्थान पर सूर्य ग्रह का निवास होता है। हमारे यहां सभी शुभ कार्य सूर्य की साक्षी में सम्पन्न कराए जाते हैं। किसी व्यक्ति को शुभ कार्य के लिए जब आप टीका लगाते हैं तो यही अंगुली कार्य करती है। सूर्य यश का कारक होता है। कनिष्ठिका: इस अंगुली के उद्गम स्थान पर बुध ग्रह का निवास है। यह धन और बौद्धिक कार्यों का कारक है। अंगूठा: इसके उद्गम स्थान पर शुक्र ग्रह का निवास होता है। शुक्र ऎशो-आराम, काम-वासना का द्योतक ह। चंद्रमा और मंगल हाथ की हथेली में स्थित होते हैं। चंद्रमा का स्थान हथेली के अंतिम कोने में और मंगल का स्थान शुक्र के नीचे होता है। जब हम किसी से राजीनामा करते या मिलते हैं तो आपस में हाथ मिलाते हैं। इसके अलावा कभी किसी से झगड़ा होने पर हम थप्पड़ भी लगा देते हैं। चंद्रमा मन का कारक ग्रह और मस्तिष्क से इसका संबंध है। मंगल ग्रह को ग्रहों का सेनापति कहा गया है। इसका स्वभाव क्रोधी है। यह पाप ग्रह है और लड़ाई का कारक है। जन्म पत्रिका में जिस प्रकार ग्रहों के अनुसार व्यक्ति का उत्थान-पतन एवं विवाह होता, उसी प्रकार हमारे हाथ में स्थित ग्रहों के अनुसार मनुष्य कार्य, आचरण, व्यवहार करता है।
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2 Responses to "मुट्ठी में बंद दुनिया"