बदायूं लोकसभा क्षेत्र के समीकरण बदले

बदायूं लोकसभा क्षेत्र के समीकरण बदले

– पूर्व विधायक महेश गुप्ता हो सकते हैं भाजपा के बदायूं से प्रत्याशी

– मुस्लिमों के साथ सवर्ण भी नहीं मिले तो सपा को मिल सकती है हार

लोकसभा चुनाव 2014 में होने हैं, लेकिन राजनैतिक दलों और संभावित प्रत्याशियों ने अपनी-अपनी गोटियाँ अभी से बिछानी शुरू कर दी हैं। बदलते राजनैतिक समीकरणों से स्वयं को अजेय मानने वाले प्रत्याशियों की नींद उड़ गई है। समाजवादी पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले बदायूं में हालात एक दम विपरीत हो गये हैं, जिससे छुटभैये पाला बदलने को आतुर नज़र आ रहे हैं।

जनपद बदायूं एवं बदायूं लोकसभा क्षेत्र समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है। बदायूं की जनता ने सपा का साथ भी दिया है। चार-पांच विधायकों के साथ बदायूं की जनता सांसद सपा के उम्मीदवार को ही चुनती रही है। पिछले विधान सभा चुनाव में भी बदायूं ने सपा को चार विधायक दिए हैं, लेकिन बदायूं के मतदाताओं के रुख से इस बार लग रहा है कि वह यह अहसास कराने का मन बना चुके हैं कि वह गुलाम नहीं हैं, इसलिए इस बार मतदाता स्थानीय प्रत्याशी को वरीयता देने का मन बनाते दिख रहे हैं।

बसपा के मुस्लिम प्रत्याशी की घोषणा होने से मतदाता और भी खुश नज़र आ रहे हैं। पिछले चुनाव में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी के खाते में जाने से हिन्दू मतदाता सपा प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव को मिल गये थे, जिससे सपा जीत दर्ज करने में कामयाब रही, लेकिन इस बार इस तरह की अफवाहों को लेकर मतदाता पहले से ही सतर्क हैं, वहीं बसपा के मतदाताओं पर ऐसी अफवाहों का कोई असर भी नहीं होता, इसलिए सपा अब सवर्ण मतदाताओं को रिझाने का प्रयास कर सकती है। भाजपा और कांग्रेस के पत्ते खुलने बाक़ी है। कांग्रेस का कोई वोट बैंक है नहीं, वह जिसे टिकिट दे देगी, वह अपनी जमानत बचाने के लिए संघर्ष करेगा, इसलिए भाजपा की बात करते हैं।

सूत्रों के अनुसार भाजपा में टिकिट के दावेदारों की सूची में पूर्व विधायक महेश गुप्ता का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। उन्हीं को प्रत्याशी माना जाए, तो घनघोर त्रिकोणीय संघर्ष होगा, जिसका सीधा नुकसान सपा प्रत्याशी को ही होगा, क्योंकि निर्विवाद छवि के महेश गुप्ता क्षेत्र में लोकप्रिय हैं, साथ ही उनके साथ सभी जातियों के लोग आसानी से खड़े हो जाते हैं, वहीं भाजपा ने किसी ब्राह्मण को प्रत्याशी बना दिया, तो भाजपा सीट भले ही हार जाए, पर सपा की जीत में रोड़ा अवश्य बन जायेगी, फिर भी सपाई यही चाहेंगे कि भाजपा महेश गुप्ता की जगह किसी और को टिकिट दे, क्योंकि महेश गुप्ता की छवि और लोकप्रियता को चुनौनी देना आसान नहीं होगा। उधर बदल चुके राजनैतिक समीकरणों के चलते तमाम छुटभैये बसपा में जाने का मन बना चुके हैं, पर प्रदेश में सपा की सरकार होने के कारण चुनाव तक धैर्य धारण कर सकते हैं।

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