बदायूं के जिलाधिकारी चन्द्रप्रकाश त्रिपाठी का खुला संरक्षण होने के कारण जिले की खनिज संपदा को खनन माफिया खुलेआम लूट रहे हैं। हालात इतने खराब हो चले हैं कि माफिया के क्षेत्र में आम आदमी पहुंच भी जाये, तो माफिया के सशस्त्रधारी पहरेदार भगा देते हैं। दहशत का आलम यह है कि लोगों ने अवैध खनन क्षेत्र की ओर और रात-दिन निकल रहे डंपरों को देखना तक बंद कर दिया है। डीएम के लालची स्वभाव के कारण जिले में ही नहीं, बल्कि जिले के बाहर भी सरकार की खुलेआम फजीहत हो रही है।
उल्लेखनीय है कि बदायूं जिले के कस्बा कछला स्थित गंगा में चिंकाड़ा नाम के किसी खनन माफिया का कब्जा है। यह माफिया पिछले सात-आठ वर्षों से गंगा को खोखला कर रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि रात-दिन मशीनें चलती हैं और लगभग प्रतिदिन पांच सौ से भी अधिक डंपर रेत से भर कर जिले के बाहर भेजे जाते हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन मौन है। प्रदेश में बसपा की सरकार का पतन हुआ, तो लोगों को लगता था कि सपा सरकार माफिया को सलाखों के पीछे भेज देगी, लेकिन डीएम ने माफिया को अपनी गोद में बैठा रखा है। हालांकि विभागीय अफसरों का दावा है कि अवैध खनन नहीं हो रहा है और कोई माफिया भी नहीं है, साथ ही यह भी दावा है कि पट्टे नियमानुसार जारी किये गये हैं और पट्टेदार ही रेत बेच रहे हैं, लेकिन विभागीय अफसरों के दावे के उलट आम जनता में यह बात आम हो चुकी है कि माफिया ने ही अपने लोगों के नाम अवैध खनन करने के लिए पट्टे जारी करा रखे हैं।
सूत्रों का कहना है कि माफिया स्थानीय प्रशासन को एक करोड़ रुपया प्रतिमाह देता है, जो संबंधित अफसरों और नेताओं में बंटते हैं, इसीलिए सब के सब मौन हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि माफिया को डीएम का खुला संरक्षण प्राप्त है, तभी माफिया बेखौफ है, लेकिन डीएम की मिलीभगत के चलते सरकार की बड़ी फजीहत हो रही है। अवैध खनन का धंधा तत्काल बंद नहीं हुआ, तो आने वाले समय में सरकार की और भी किरकिरी होने की संभावना है, क्योंकि चुनाव में विरोधी प्रत्याशी अवैध खनन के धंधे को मुददा बना सकते हैं, जिससे बचने के लिए सरकार को डीएम और माफिया के विरुद्ध कार्रवाई करानी ही होगी।
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उत्तर प्रदेश में बदायूं बना खनन माफियाओं की राजधानी