जनता को ही छीनना पड़ेगा न्याय

जनता को ही छीनना पड़ेगा न्याय
बदायूं के कटरा सादात गंज में घटना के बारे में जानकारी लेती राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम
बदायूं के कटरा सादात गंज में घटना के बारे में जानकारी लेती राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का हाल बेहद खराब है। कानून व्यवस्था खराब होने के पीछे अहम कारण यही है कि थानेदारों की तैनाती सत्ता पक्ष के विधायकों की संस्तुति पर की जा रही है, जिससे थानेदारों की जवाबदेही विभागीय अफसरों के प्रति नहीं, बल्कि विधायकों के प्रति ही है और विधायक तब तक थानेदार से नाराज नहीं होते, जब तक थानेदार उनके इशारे पर काम करते रहते हैं, इसीलिए थानेदारों के मन से एसएसपी, डीआईजी और आईजी का भय समाप्त होता जा रहा है और इसीलिए हाहाकार मचा हुआ है। इससे भी बड़े दुःख की बात यह है कि व्यवस्था दुरुस्त करने की दिशा में एक कदम भी उठता नज़र नहीं आ रहा। फ़िलहाल बदायूं जिले की चर्चित घटना की बात करते हैं।

दिल दहला देने वाली सनसनीखेज घटना बदायूं जिले में पड़ने वाले उसहैत थाना क्षेत्र के गाँव कटरा सादातगंज की है। एक सामान्य से मौर्य परिवार की 12 और 14 वर्ष उम्र की चचेरी-तहेरी बहनें रोज की तरह ही पिछले मंगलवार की रात करीब 8 बजे जंगल में शौच को गई थीं, तो अचानक गायब हो गईं। देर तक न लौटने पर परिजनों ने स्वयं ही खोजबीन शुरू की, तो दोनों बहनों का कहीं पता नहीं चला। थकहार कर परिजन रात में ही स्थानीय पुलिस चौकी पर गये और मौके पर मौजूद सिपाहियों को पूरी घटना बता कर मदद की गुहार लगाई। परिजनों के अनुसार सिपाही सर्वेश यादव व छत्रपाल ने उन्हें गालियाँ देकर भगा दिया। पुलिस द्वारा दुत्कारने के बाद भी रोते-विलखते और भयभीत परिजन स्वयं ही पूरी रात अपने जिगर के टुकड़ों को खोजते रहे, पर लड़कियों को खोजने में असफल रहे, लेकिन रहस्यमयी अंदाज़ में सुबह गाँव के पास ही आम के एक पेड़ कर दोनों के शव लटके मिले, तो परिवार सहित गाँव के ही नहीं, बल्कि समूचे इलाके के लोग सन्न रह गये।

सामान्य तौर पर पुलिस जैसा करती है, वैसे ही सुबह पेड़ से शव उतार कर और पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम हाउस भेजने की कार्रवाई में जुटने को आ गई, लेकिन परिजन घटना में सिपाहियों के ही संलिप्त होने की आशंका जता रहे थे, जिस पर पुलिस परिजनों को समझाने में जुट गई। दोपहर बाद घटना जिला स्तरीय अफसरों के संज्ञान में इसलिए आ गई कि परिजन पेड़ से शव नहीं उतारने दे रहे थे। सुबह ही शव उतार कर पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भेज दिए होते, तो कोई अफसर सच जानने तक नहीं जाता। परेशान परिजनों की जिद के चलते प्रभारी डीएम उदय राज सिंह और एसपी सिटी मानपाल सिंह चौहान मौके पर गये, लेकिन यह दोनों अफसर भी परिजनों को ही शांत करने के प्रयास में जुटे रहे, जिससे दोनों बहनों के शव दस घंटे तक पेड़ पर ही लटके रहे, जो मानवीय संवेदनाओं को तार-तार करने के लिए काफी हैं।

पीड़ित परिजनों के साथ इलाके के सैकड़ों लोग थे, इसलिए पुलिस मनमानी नहीं कर पाई और हार कर शाम को मुकदमा दर्ज करना पड़ा। एक मृतक लड़की के पिता की तहरीर पर इसी गाँव के एक दबंग यादव परिवार के तीन सगे भाइयों पप्पू यादव, अवधेश यादव और उर्वेश यादव एवं दो सिपाही सर्वेश यादव और छत्रपाल को नामजद करते हुए दो अज्ञात सहित कुल सात लोगों के विरुद्ध लड़कियों को अगवा करने और दुष्कर्म के बाद उनकी हत्या करने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया। इसके बाद बुधवार की ही रात में जिला मुख्यालय पर डॉक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया, जिसमें दुष्कर्म की पुष्टि भी हो गई।

इस घटना में स्थानीय पुलिस के साथ ही अफसरों की भूमिका भी पहले क्षण से संदिग्ध रही है, क्योंकि दुष्कर्म के बाद किये गये दोहरे हत्या कांड में जिस तेजी से कार्रवाई होना चाहिए थी, वैसी नहीं हुई। मीडिया ने दबाव बनाया, तो आरोपी सिपाहियों के साथ पूरे चौकी स्टाफ को निलंबित कर दिया। एक सिपाही सर्वेश यादव और पप्पू व अवधेश को गिरफ्तार भी कर लिया, लेकिन घटना के खुलासे के नाम पर पुलिस के पास अभी तक बताने को कुछ नहीं है। दुस्साहसिक घटना राष्ट्रीय मीडिया में छा गई, तो प्रधानमंत्री कार्यालय ने घटना से संबंधित रिपोर्ट तलब कर ली। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई के निर्देश दिए और बसपा सुप्रीमो मायावती ने खराब कानून व्यवस्था का खुला आरोप लगाते हुए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की, साथ ही घटना स्थल पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के आने की खबर आ गई और राष्ट्रीय महिला आयोग की टीम ने गाँव में पहुंच कर जांच कर ली, तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की घटना में रूचि नज़र आई।

केंद्र सरकार के स्तर से इतना सब होने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हरकत में आये। पुलिस महानिदेशक ए.एल. बनर्जी एवं विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ दर्दनाक घटना की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अब विशेष टीम गठित कर आरोपियों को तत्काल गिरफ्तार करने के आदेश दिए हैं। उन्होंने इस मुकदमे को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाने की संस्तुति की है।

अखिलेश यादव ने पीड़ित परिवार को समुचित सुरक्षा मुहैय्या कराने और पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के भी निर्देश दिए हैं, लेकिन सवाल उठता है कि मीडिया, केंद्र सरकार और विपक्ष के नेता घटना को लेकर पुलिस-प्रशासन को कठघरे में खड़ा न करते, तो क्या पीड़ित परिवार की बात कोई सुनता?

जवाब स्पष्ट है कि आरोपियों को बचा दिया जाता, क्योंकि बदायूं जिले के ही उसांवा थाना क्षेत्र में स्थिति गाँव दलेल नगर में 26 मई की रात में एक विवाहिता को दबंग यादव जबरन उठा ले गया और ट्यूबेल पर बंधक बना कर पूरी रात उसके साथ दुष्कर्म किया। दबंग आरोपी ने उसे सुबह मुक्त किया, तो वह 27 मई को पति के साथ थाने गई, जहां एसओ ने पीड़ित महिला के पति को ही बंधक बना लिया और दबंग आरोपी से फैसला करने का पति पर दबाव बनाया, इस प्रकरण में अभी तक मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है। इसी तरह जिला बदायूं स्थित इस्लामनगर थाना क्षेत्र के गाँव नूरपुर पिनौनी निवासी एक जाटव परिवार की लगभग पन्द्रह वर्षीय बेटी गाँव में किराये पर रह रहा विदलेश यादव उर्फ प्रवेश यादव निवासी रामपुर खादर थाना रजपुरा जिला संभल किसी तरह 23 अप्रैल को साथ ले गया। प्रवेश यादव पर यह भी आरोप है कि वह नाबालिग लड़कियों को बेचने का धंधा करता है। इस प्रकरण में पुलिस ने मुकदमा तो दर्ज कर लिया है, पर अभी तक न लड़की बरामद की है और न ही आरोपी को गिरफ्तार किया गया है। बताया जाता है कि आरोपी एक सत्ता पक्ष के विधायक का खास है, जिसके दबाव में पुलिस मौन है। ऐसी और भी तमाम घटनायें हैं। उत्तर प्रदेश के हर जिले में मुख्यालय पर भटकते पीड़ित मिल जायेंगे, जिनकी कोई सुनने तक को तैयार नहीं है, इसीलिए यह बड़ा सवाल उठ रहा है कि जिन घटनाओं में मीडिया, केंद्र सरकार और विपक्षी दलों के नेता रूचि नहीं लेंगे, उन्हें न्याय कैसे मिलेगा?

बी.पी. गौतम
बी.पी. गौतम

खैर, सामाजिक प्राणी के साथ मनुष्य बुद्धिमान भी है, जो एक-दूसरे की भावनाओं को महसूस करने के साथ व्यक्त भी कर सकता है, पर ऐसी दर्दनाक घटनाओं पर भी जो मनुष्य प्रतिक्रिया व्यक्त किये बिना रह जाते हैं, उन्हें क्या कहा जाये? ऐसी घटनाओं को नज़र अंदाज़ करने वाले अफसर नौकरी करने के योग्य नहीं हैं और न ही उन नेताओं को राजनीति करने का अधिकार है, जो संवेदना शून्य हैं। निष्कर्ष यही है कि अफसर और नेताओं से न्याय की आस लगाने की बजाये, अब जनता ही एकजुट हो और स्वयं न्याय छीने।

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