जनता की पुरजोर मांग के बाद तमाम अवरोधों के बावजूद आखिरकार भाजपा ने मोदी के नाम पर मोहर लगा दी। लगा कि इस देश को वाकई जनता या यूं कहें, कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स चला रही हैं। गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत की हैट्रिक लगने के बाद से ही ‘देश में नमो नमो नमो’ का नारा बुलंदी पर था। इसका कारण केवल मोदी का हिन्दू नेता होना नहीं था। एक ओर मोदी ने अपनी सांप्रदायिक छवि से हिन्दू धड़े को खुश किया और दूसरी ओर गुजरात को विकास का उदाहरण बनाकर धर्मनिरपेक्षों का भी मुंह बंद किया। जो मुसलमान गोधरा कांड के बाद मोदी को आतंकवादी के तौर पर देखते थे, उन्हीं मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग इस विधानसभा चुनाव में मोदी की पैरवी करता दिखा। दूसरी बार चुनाव जीतने के बाद से ही मोदी ने अपनी सांप्रदायिक पहचान से मुक्ति पाने के लिए विकास पुरुष बनने पर मेहनत शुरू कर दी थी। इसके लिए उन्होंने न मुस्लिम टोपी पहनी और न ही तुष्टीकरण का सहारा लिया। यही कारण रहा कि सांप्रदायिक छवि से मुक्ति पाने के प्रयास करके भी वे हिदुओं के प्रिय नेता बने रहे। पहली बार चुनाव जीतने के तुरंत बाद मोदी ने घोषणा की, कि वे एक साल में एक लाख कुएं खुदवाएंगे। लोगों ने इसे असंभव और अति उत्साह में की गयी घोषणा करार दे दिया। अधिकांश जनता ने भी इसे नेताई वादा ही समझा, पर मोदी ने यह कर दिखाया और जलसंकट से जूझ रहे गुजरात के बड़े इलाके को राहत दिलाई।
इसी तरह जब पूरा देश भ्रष्टाचार से जूझ रहा था और लोगों ने रिश्वत को भी ज़रूरी भुगतान के रूप में लगभग स्वीकार कर लिया था तो गुजरात ने एक नई मिसाल कायम की। गुजरात ऐसा प्रदेश बना जहां काम करवाने के लिए आपको सिर्फ अपने कागज पूरे करके लाइन में खड़ा होना था। सरकारी तंत्र के रिश्वत मुक्त होते ही कंपनियों में होड लग गयी गुजरात में अपनी यूनिट बनाने की। इसी खूबी ने फिल्म निर्माण को भी आकर्षित किया और फिल्मी सितारे बिना पैसे लिए गुजरात की जहां-तहां प्रशंसा करते दिखाई देने लगे। विकास की राह पर बढ़ रहे गुजरात ने विदेशी निवेश को भी आकर्षित किया और इस प्रकार गुजरात औद्योगिक रूप से सम्पन्न बन गया। इतने सालों की कमी को एक दशक में पूरा करना असंभव है और स्वाभाविक रूप से गुजरात के कुछ इलाके संपन्नता की इस बारिश में भी सूखे रह गए, जिसके लिए मोदी की आलोचना भी हुई। बाहर के ही नहीं, घर के भीतर के लोगों ने भी कहा कि, विकास का प्रचार केवल मोदी के मीडिया मैनेजमेंट का नतीजा है, जमीनी सच्चाई कुछ और ही है। पिछले विधानसभा चुनाव में ऐसे सभी सूखे रह गए इलाकों से विपक्षियों और भितरघातियों ने बहुत उम्मीदें बांधी थी पर जनता ने खुलकर मोदी को समर्थन दिया और ऐसी सभी उम्मीदें धराशायी हो गईं। यह मोदी की कूटनीति ही कही जाएगी, कि आज तक उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं बताया है। अपने को वे गुजरात को समर्पित सेवक ही प्रदर्शित करते हैं, पर उनके समर्थकों ने इस मांग को कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया और मोदी ने इसका कभी खंडन नहीं किया। खैर! कूटनीति के बिना राजनीति कैसी?
नमो नमो नमो के जप ने रंग दिखा दिया और आखिर भाजपा ने घोषणा कर दी कि अगला लोकसभा चुनाव मोदी और गडकरी के नेतृत्व में होगा। एक बाधा तो पार हो गयी, पर आगे अभी कई चुनौतियाँ हैं। गुजरात में जीतना और देश में जीतने में बहुत अंतर है। सबसे मुख्य बात है यह है कि देश का एक बड़ा तबका नहीं जानता कि, गुजरात कहाँ है और मोदी ने वहाँ क्या कारनामा किया है। गुजरात में क्षेत्रीय पार्टियों का कोई अस्तित्व नहीं, जबकि देश में क्षेत्रीय पार्टियों की भरमार है और वे वोटकटर की भूमिका निभाती हैं। उत्तर प्रदेश में जहां से लोकसभा के सबसे अधिक सदस्य चुने जाते हैं, भाजपा तीसरे नंबर की पार्टी है। इस सबके साथ भाजपा का एक बड़ा हिस्सा मोदी का पीठ पीछे और एनडीए के अनेक घटकदल खुल्लमखुल्ला विरोध करते हैं। ऐसे में भितरघात की और अनेक दलों के छिटककर भागने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। इस सबके बावजूद हम जानते हैं कि मोदी कोई सीधे-सादे नेता नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक व्यक्ति हैं। उन्होंने इस ओर ध्यान न दिया हो इसकी संभावना कम ही है। अब देखना केवल इतना है कि, वे जनता को अपने गुजरात में किए कामों से अवगत करा पाते हैं या नहीं? अपने इस मिशन में वे विरोधियों को शामिल कर पाते हैं या नहीं? सही जवाब तो चुनाव के नतीजे ही देंगे क्योंकि फेसबुक और ट्विटर पर समर्थन करने वाले वोट डालने नहीं जाते और जो वोट डालने जाते हैं वे मोदी के कार्यों को नहीं जानते। मोदी को अब कहीं विकास पुरुष दिखना होगा और कहीं एक कट्टर हिन्दू। कहीं अपने को भाजपा में मिला देना होगा और कहीं अपने को भाजपा से ऊपर दिखाना होगा। देखना दिलचस्प होगा कि नमो, नमो, नमो मंत्र का जादू लोकसभा चुनाव में भी चलता है या नहीं।
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