– कोर्ट ने मुमुक्षु आश्रम की महासमिति और दैवी संपद महाविद्यालय की प्रबंध समिति को विवादित करार दिया
– कथित संत चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह की सेटिंग के चलते सब-रजिस्ट्रार और वीसी ने दे दी थी मान्यता
शाहजहाँपुर के मुमुक्षु आश्रम और दैवी संपद महाविद्यालय की फ़र्ज़ी कमेटियों को मान्यता देने के सब-रजिस्ट्रार, बरेली और सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय बनारस के उप कुलपति के आदेशों को उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया, जिससे फ़र्ज़ी कमेटी बनाने वालों में हड़कंप मच गया है।
उल्लेखनीय है कि मुमुक्षु आश्रम महासमिति और दैवी संपद महाविद्यालय की प्रबंध समितियों की साध्वी चिदर्पिता प्रबन्धक थीं, लेकिन उनके विवाह करने के बाद कथित संत चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह ने फ़र्ज़ी कार्रवाही लिखकर साध्वी चिदर्पिता को नियम विरुद्ध पद से हटाते हुए श्रीप्रकाश डबराल को प्रबंधक और अवनीश मिश्रा को उपाध्यक्ष मनोनीत कर दिया। फ़र्ज़ी कार्रवाही लिखते समय कथित संत चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह ने इस ओर भी ध्यान नहीं दिया कि उसी महासमिति के अधीन संचलित संस्थाओं में श्रीप्रकाश डबराल लाइब्रेरियन और अवनीश मिश्रा प्राचार्य के पद पर वेतनभोगी कर्मी हैं। दूसरी ओर कथित संत चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह द्वारा की जा रही फ़र्ज़ी कार्रवाही के विरोध में सदस्यों ने साध्वी चिदर्पिता को मुमुक्षु आश्रम महासमिति और दैवी संपद महाविद्यालय की प्रबंध समिति का विधिवत अध्यक्ष चुन लिया, लेकिन कथित संत चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह की सेटिंग के चलते सब-रजिस्ट्रार, बरेली और सम्पूर्णानन्द विश्वविद्यालय बनारस के उप कुलपति ने कथित संत चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह की फ़र्ज़ी प्रबंध समितियों को मान्यता दे दी। सब-रजिस्ट्रार और उपकुलपति के आदेशों के विरुद्ध साध्वी चिदर्पिता के पक्ष ने हाई कोर्ट की शरण ली, तो लंबी सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सब-रजिस्ट्रार और उपकुलपति के आदेशों को निरस्त कर दिया। यह दोनों आदेश निरस्त करते हुए कोर्ट ने कहा, कि सब-रजिस्ट्रार द्वारा दिया गया आदेश प्रथम दृष्टया न्यायसंगत नहीं है और उपकुलपति ने बिना मामले पर ध्यान दिये मशीनी अंदाज़ में आदेश दे दिया है। कोर्ट के इस निर्णय से जहां सब-रजिस्ट्रार और उपकुलपति की फजीहत हुई है, वहीं कथित संत चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह और उसकी फ़र्ज़ी समितियों के पदाधिकारियों में हड़कंप मच गया है।