न मौसम, न बादल, फिर भी बरसात होने लगे, तो अधिकाँश लोगों के मन में यह सवाल उठने लगेगा कि बारिश कैसे हो रही है? गोविंदाचार्य और उमा भारती के जवानी के चर्चे आज कल सुर्ख़ियों में हैं, जिससे अधिकांश लोगों के मन में यह सवाल चल रहा है कि बुझ चुकी आग की राख क्यूं कुरेदी जा रही है, वहीं जानकारों का यह भी कहना है कि गोविन्दाचार्य कोई बात यूं ही तो नहीं बोलेंगे।
बॉलीवुड में ऐसे किस्से आज कल आम हो चले हैं। फिल्म लांच होने से पहले अचानक मुंबईया फ़िल्मी कलाकारों के अफेयर के किस्से टीवी चैनल्स पर आम तौर पर देखे जा सकते हैं, ऐसे किस्सों से मेल-फीमेल दोनों को ही कोई आपत्ति नहीं होती, इसे वे अपनी मार्केटिंग से ही जोड़ कर देखते हैं। हाल ही में यह जवानी है दीवानी फिल्म की लांचिंग से पहले दीपिका और रणवीर के टूट चुके अफेयर का किस्सा खूब चर्चा में रहा, ऐसे ही कुछ-कुछ गोविन्दाचार्य करते नज़र आ रहे हैं, वरना जवानी की दास्तां बुढ़ापे में सुनाने की और क्या मजबूरियां हो सकती हैं?
खैर, गोविन्दाचार्य और उमा भारती अपने प्रेम प्रसंग को महान कार्य बताते रहे हैं, क्योंकि दोनों ही यह बात कहते रहे हैं कि देश और समाज के लिए उन्होंने अपने प्रेम की बलि दे दी, लेकिन सवाल उठता है कि इन दोनों के प्रेम की बलि से देश और समाज को अब तक क्या लाभ हुआ है?
29 बरसों तक आईबी की सेवा करने वाले इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व जॉइंट डायरेक्टर एम.के. धर ने अपनी किताब ओपन सीक्रेट्स में लिखा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा विवाह की इजाजत न मिलने के कारण गोविंदाचार्य और उमा भारती को गहरा धक्का लगा, जिससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इन प्रेमियों ने कोई त्याग नहीं किया, बल्कि राजनैतिक महत्वकांक्षाओं के चलते विवाह नहीं कर पाये। एम. के. धर लिखते हैं कि उमा भारती ने कई बार उनकी पत्नी को बताया था कि वह गोविंद से शादी करना चाहती हैं और संघ के शीर्ष नेतृत्व से मंजूरी मिलने के बाद वह संन्यासिन का बाना त्याग देंगी। उन्होंने यह भी लिखा है कि संघ के इस फैसले से उमा भारती मन ही मन दुखी हुईं और गोविंदाचार्य ने मुझे और मेरी पत्नी से कहा कि हम लोग उमा भारती को इस सदमे से बाहर निकालें, लेकिन उमा का दर्द इतना बड़ा था कि वह हमारे समझाने से भी उबर नहीं सकीं। एम. के. धर अपनी किताब में लिखते हैं कि गोविंदाचार्य और उमा भारती अक्सर साथ ही उनके घर पर आते थे। उमा भारती गाड़ी चलाकर गोविंदाचार्य को साथ लाती थीं और हम सब लोग साथ में खाना खाते थे, गपशप भी करते थे। इसके अलावा 30 जून 2008 को उमा भारती ने भोपाल के रविन्द्र भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में खुद कहा था कि गोविंदाचार्य उनसे शादी करना चाहते थे। इस शादी का प्रस्ताव स्वयं लालकृष्ण आडवाणी लेकर आए थे, लेकिन उनके बड़े भाई स्वामी प्रसाद लोधी ने गोविंदाचार्य को नापसंद कर दिया था। मंचासीन गोविंदाचार्य के सामने उमा भारती ने कहा था कि इस सभागार में मेरे लिए एक अद्भुत संयोग बन गया है। मेरे जीवन को जिन-जिन लोगों ने संवारा है, वे सब इस सभागार में मौजूद हैं। गोविंदाचार्य से मेरे संबंध रहे हैं। मुझे उनसे मिलने के लिए केदारनाथ जाने की जरूरत नहीं है। मैं उनसे दिल्ली में भी मिलती हूं। वह भोपाल में भी मुझसे मिलते हैं। मेरे यहां आ सकते है, साथ ही यह भी जोड़ा था कि आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कलेजे को ठंडक पड़ गई होगी। उन्होंने आगे कहा था ‘ मैं बताती हूं कि गोविंदजी से मेरी कैसे मुलाकात हुई। राजीव गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में 1991 में गोविंद जी से मेरी मुलाकात हुई। बाद में एक दिन आडवाणी जी ने कहा कि गोविंदाचार्य तुमसे विवाह करना चाहते हैं। मैंने यह बात अपने बड़े भाई स्वामी प्रसाद को बताई। उन्होंने कहा कि मैं उसे देखना चाहूंगा। मैं गोविंद जी को लेकर गई। उन्होंने गोविंद जी को देखा तो निराश हुए। इन्हें देखकर कोई भी निराश ही होगा , जो इन्हें जानता न हो। उन्होंने कहा कि तुम्हें यही व्यक्ति मिला। मैंने कहा कि वह बहुत बुद्धिमान हैं। फिर मैंने कहा कि मैं संन्यास लूंगी , यही पक्का निर्णय है। ‘
उमा ने आगे बताया था ‘ मैं अपने गुरुदेव के पास गई। उन्होंने कहा कि मैं 1986 में ही तुम्हारी कुंडली देख चुका हूं और मुझे पता था कि तुम संन्यास लोगी। जब 17 नवंबर 1992 को मैं संन्यास लेकर चिमटा और कमंडल के साथ दिल्ली पहुंची, तो मेरा स्वागत करने के लिए परिवारों के साथ गोविंदाचार्य भी मौजूद थे। उन्होंने मेरे पांव छुए और कहा कि मैं आज से तुम्हें अपना गुरु मानता हूं। उस दिन के बाद से ही गोविंद जी के प्रति मेरे पहले के भाव समाप्त हो गए। ‘ इसके अलावा कहा था कि ‘ डेढ़ साल पहले मुझे पता चला कि गोविंद जी के पास न तो रहने को घर है और न गाड़ी। मुझे बहुत दुख हुआ। मैंने उनसे कहा आप मेरे घर रहिए। आपने मुझे गुरु माना है। यह बात मैंने संगठन को भी बता दी थी। मेरे कहने पर ही गोविंदाचार्य बनारस गए थे। वहां उन्होंने 6 माह तक गहन चिंतन किया। इसीलिए मैं कहती हूं कि मुझे गोविंदाचार्य से मिलने केदारनाथ जाने की जरूरत नहीं है। मैं संन्यास लेते वक्त खुद का पिंडदान और तर्पण कर चुकी हूं। पूर्व के सभी संबंध खत्म हो गए। गुरुदेव ने कहा परिवार से संबंध मत रखना। वैसे कोई तो सेवा करेगा , इसलिए परिवार के लोग सेवा कर सकते हैं , लेकिन तुम उन से मोह मत पालना। मेरे बड़े भाई को 1996 से ही ‘ आंय-बांय ‘ बोलने की आदत पड़ी है। वह भावनात्मक रूप से असंतुलित हो गए हैं , लेकिन दिल से बहुत सीधे और भोले हैं। मेरा चिमटा आज भी श्यामला हिल में गड़ा है। जब तक मैं न चाहूं उसे कोई नहीं उखाड़ सकता। ‘
इसी तरह 24 मई 2013 को अंग्रेजी पत्रिका द वीक को दिए इंटरव्यू में उमा भारती ने कहा था कि वह पूर्व विचारक गोविंदाचार्य से प्यार करती थीं। इस इंटरव्यू में उमा भारती ने स्वीकार किया था, ‘हां, मैं उन (गोविंदाचार्य) से प्यार करती थी। मैं उनसे शादी भी करना चाहती थी। मैं उनका हर जगह पीछा करती थी और मुझे लगता था कि वह भी मुझसे प्यार करते हैं। हालांकि, उन्होंने मुझे कभी इस बारे में नहीं बताया। लेकिन गोविंदाचार्य ने अपनी भावनाएं बीजेपी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी और संघ के सरसंघचालक रहे भाऊराव देवरस के सामने जाहिर की थीं। इस बारे में भाऊराव ने मुझसे बात की थी और कहा था कि जनता और देश के लिए मुझे शादी नहीं करनी चाहिए। इसलिए मैंने शादी करने का खयाल ही दिल से निकाल दिया।’
उधर नागपुर में एक अखबार को दिए गए एक इंटरव्यू में गोविंदाचार्य ने यह माना था कि उन्होंने उमा भारती को शादी के लिए प्रपोज किया था। गोविंदाचार्य ने इस बारे में कहा था, ‘जब आरएसएस के कुछ साथियों ने ऐसे रिश्ते पर हामी भरी तो मैंने उमा भारती को प्रपोज किया था।’ हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें इस बात का पछतावा है कि उमा से उनका रिश्ता मूर्त रूप नहीं ले पाया, तो गोविंदाचार्य ने कुछ भी कहने से मना कर दिया था।
इधर द वीक को दिए गए एक इंटरव्यू में जब उमा भारती से यह पूछा गया कि क्या संन्यास से पहले वे किसी को पसंद करती थीं, तो उन्होंने जवाब दिया था, ‘हां, कई। लेकिन अब उनमें से सभी की शादी हो चुकी है और वे सभी खुश हैं। वे सभी समाज के ऊंचे तबके से ताल्लुक रखते थे। मैं भी एक मासूम लड़की थी।’ जीवन में अपनी इच्छा के बारे में उमा ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मैं नदी किनारे बने एक छोटे से घर में कुत्तों, गायों और चिड़ियों के साथ रहना चाहती हूं। मेरे पास एक मारूति भी होनी चाहिए।’
गोविन्दाचार्य और उमा भारती ने अलग-अलग समय पर भिन्न विचार व्यक्त किये हैं, जिससे साफ़ है कि यह दोनों ही मीडिया को मनगढ़ंत कहानी सुनाते हैं, क्योंकि सच याद नहीं रखना पड़ता और झूठ इसलिए पकड़ जाता है कि पहले क्या बोला था, यह याद ही नहीं रहता।
उमा भारती और गोविन्दाचार्य के बारे में बहुत से लोग अब ज्यादा नहीं जानते, इसलिए बताना आवश्यक है कि उमा भारती का जन्म मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में 1959 में हुआ था। ग्वालियर राजघराने की विजयराजे सिंधिया ने उनकी बहुत मदद की थी। छोटी उम्र से ही उमा भारती कथा वाचिका का काम करने लगी थीं, इसी उम्र में उमा भारती ने कुछ समय हरिद्वार के परमार्थ आश्रम में स्वामी धर्मानंद सरस्वती के सानिंध्य में भी बिताया। 1984 में उन्होंने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। लेकिन 1989 में उन्हें खजुराहो लोकसभा सीट पर जीत हासिल हुई और 1991, 1996 और 1998 के चुनावों में भी वे यहां से जीतीं। उमा भारती ने 1992 में अयोध्या आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। इस मामले में उनके खिलाफ आज भी मुकदमा चल रहा है। 1999 के लोकसभा चुनाव में उमा ने अपनी सीट बदलते हुए भोपाल से चुनाव लड़ा और जीतीं। इसके बाद वे वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रहीं। 2003 के विधानसभा चुनाव में उमा भारती की अगुवाई में बीजेपी ने मध्य प्रदेश में प्रचंड बहुमत हासिल कर सरकार बनाई थी। लेकिन अगस्त, 2004 में जब 1994 के हुबली दंगे से जुड़े एक केस में उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वॉरंट जारी हुआ तो उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। अंत में लालकृष्ण आडवाणी और शिवराज सिंह चौहान की आलोचना के चलते बीजेपी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। 7 जून, 2011 को बीजेपी में उनकी वापसी हुई थी और उन्हें यूपी में पार्टी को मजबूत करने और गंगा बचाओ अभियान की अगुवाई करने का जिम्मा सौंपा गया। मार्च, 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उमा भारती ने महोबा जिले की चरखारी विधानसभा सीट जीती थी।
के. एन. गोविंदाचार्य इन दिनों ‘राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन’ नाम का संगठन चला रहे हैं। इसके अलावा वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी वैचारिक तौर पर जुड़े हुए हैं। वे ‘जल, जमीन और जंगल’ के सिद्धांत का प्रचार कर रहे हैं। गोविंदाचार्य ने अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी को ‘मुखौटा’ कहा था। उसके बाद दोनों नेताओं के रिश्तों में खटास आ गई थी। 2000 में गोविंदाचार्य ने सक्रिय राजनीति से अध्ययन अवकाश लिया था और 2003 में पार्टी को अलविदा कह दिया था। गोविंदाचार्य का जन्म तिरुपति में हुआ था। लेकिन वे बचपन में ही वाराणसी आ गए थे। उन्होंने बीएचयू से 1962 में एमएससी की थी। इसके बाद वे संघ के प्रचारक बन गए थे। गोविंदाचार्य ने जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। 1988 में वे बीजेपी में औपचारिक तौर पर शामिल हो गए और 2000 तक पार्टी के महासचिव रहे।
गोविंदाचार्य के अटल बिहारी वाजपेयी से संबंध मधुर नहीं थे, मुरली मनोहर जोशी से भी खटास थी और लालकृष्ण आडवाणी उनके प्रति असहिष्णु थे। दरअसल संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष लोग गोविंदाचार्य को एक बिंदु से आगे बढ़ता नहीं देखना चाहते थे। गोविंदाचार्य की प्रतिभा से वे सब घबराए हुए थे और उमा भारती व गोविन्दाचार्य का मिलन न होने देने का एक कारण यह भी था। गोविंदाचार्य की दृष्टि में धर्मान्धता नहीं है और वह सच्चे धर्मनिरपेक्ष हैं। वह जानते हैं कि भारत एक बहुसांस्कृतिक, बहुजातीय और बहुधर्मी देश है और सबके लिए यहां पर्याप्त स्थान है, वह भाजपा और संघ में बने रहते, तो निःसंदेह सर्वोच्च नेता होते, ऐसे में यह कहा जाये कि उमा भारती के प्रेम में उन्होंने सब गँवा दिया, तो यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगा।
वर्तमान में प्रेम प्रसंग की चर्चा के पीछे यही कहा जा सकता है कि गोविन्दाचार्य को जो लोग जानते हैं, वह यह मान ही नहीं सकते कि गोविन्दाचार्य यूं ही कोई बात कहने लगेंगे। एक तीर से अनेक निशाने साधने वाले गोविन्दाचार्य के बोलने के आमतौर पर एक से अधिक कारण होते हैं। फिलहाल वह उमा भारती से अपने प्रेम संबंधों को लेकर खुल कर बोल रहे हैं, जिसके भी कई कारण हो सकते हैं। एक तो यही कि चर्चा में लाकर उमा भारती को भाजपा में शीर्ष पर लाना चाह रहे होंगे। दूसरे यह भी हो सकता है कि उमा भारती को लेकर विपक्षी कुछ बोलें, उससे पहले खुद ही चर्चा कर विपक्षियों से वह अवसर छीन ले रहे हैं और तीसरा कारण उमा भारती को ही राजनैतिक हाशिये पर पहुंचाने का हो सकता है। सटीक उद्देश्य तो वही बता सकते हैं। फिलहाल कारण जो भी हो, बुढ़ापे में जवानी के किस्सों को दोहराने का राज़ अधिकाँश लोगों की समझ से परे है।