इस देश में आम आदमी के लिए सब वीवीआईपी हैं। फिलहाल कांवरियों को लेकर आम आदमी की जान आफत में है। किसी न किसी तिराहे, चौराहे या नुक्कड़ पर डांट पड़ ही जाती है। हालात इतने खराब हैं कि शासन-प्रशासन ने खुद को तकलीफ देने की बजाए आम आदमी को चार गुना तकलीफ देने का मौखिक कानून लागू कर रखा है। चार कदम की दूरी तय करने के लिए आम आदमी को हजार कदम से भी ज्यादा चलना पड़ रहा है और पुलिस सिर्फ कुर्सी पर बैठ कर मौज लेती नज़र आ रही है।
भागीरथी के तट पर बसे अधिकांश जिलों का यही हाल है। दिल्ली हाइवे तक जाम है। पूरा मार्ग कांवरियों के कब्जे में है। बाइक सवार भी आ जाये, तो पुलिस के डंडे और कांवरियों की गालियों से बच नहीं सकता, इसलिए बच कर निकलने में ही भलाई है। बात फिलहाल बरेली-आगरा हाइवे की करते हैं। बरेली डिपो की बस ठीक साढ़े आठ बजे बदायूं दिशा के लिए चली और बीस मिनट के बाद रामगंगा से पहले रेलवे क्रासिंग पर आकर खड़ी हो गई। यहाँ छोटी और बड़ी रेल लाइन के फाटक हैं। डेली पेसिंजर और चालक-परिचालक का कहना है बड़ी रेल लाइन के फाटक पर कोई वीवीआईपी तैनात है, जो आधा घंटा पहले फाटक बंद कर देता है और ट्रेन जाने के बीस मिनट बाद खोलता है, उससे कोई कुछ बोल दे, तो उल्टा जवाब देता है, पर आम आदमी की दिक्कत महसूस करने वाला कोई नहीं है, जबकि सड़क हादसों में गंभीर रूप से घायलों को ले जाने वाली एंबुलेंस की लाइन भी लगी रहती है, जिनमें दर्द से चीख रहे घायल और ज़िंदगी से किसी तरह जूझ रहे लोगों को देख कर आम आदमी रूआँसा हो उठता है।
खैर, फाटक खुलने से पहले दोनों दिशाओं में दो-दो, तीन-तीन किमी लंबी लाइन से जूझ कर बस किसी तरह आगे बड़ी और बरेली जनपद की सीमा को पार करती हुई बदायूं सीमा में आ गई। यहाँ बदायूं जिले के बिनावर थाने की सीमा पर दबंग स्टाइल में थानाध्यक्ष दल-बल के साथ खड़े थे और स्टाइल से बस को रोकने का इशारा किया। बस रुकने के बाद स्टाइल से ही चालक को बुलाया। चालक के पास पहुँचते ही दबंग स्टाइल में सवाल किया कि बस को इधर लेकर क्यूँ आया? चालक ने जवाब दिया, साहब, रोज ही आते हैं, तो साहब जवाब से झल्ला गए और बोले- तुरंत घुमा और भमोरा-आंवला होकर बदायूँ ले जा। चालक की विनती का कोई असर नहीं हुआ। चालक के साथ यात्री भी रूआँसे, पर दबंग साहब से कौन बात करता, तो सब चुप ही रहे और चालक ने बस घुमा दी। फिर पीछे दस किमी आने के बाद बस आंवला पहुंची, तो यहाँ सैकड़ों कांवरियों का तांडव नृत्य चल रहा था, जिन्हें पुलिस के वरिष्ठ अफसर ससम्मान विदा कर रहे थे। कुछ टैक्टर हुड़दंग के लिए तैयार किए जा रहे थे, पर प्रतिबंधित होने के बावजूद किसी पुलिस वाले की हिम्मत नहीं हो रही थी, जो यह भी बोल देता कि बिना डीजे साउंड के जाओ, क्योंकि मौके पर विदा करने के लिए सैकड़ों सम्मानित महिलाएं भी खड़ी थी, जो ईंट का जवाब पत्थर से देने को काफी थीं। आम आदमी का उत्पीड़न यहीं नहीं रुका, बदायूं में घुसने से लेकर बाहर निकलने तक भी जारी था, फिर उझानी पहुँच कर बस को मुजरिया दिशा की ओर भेज दिया, इसके बाद कछला से बस पार होने में लोगों को शिव भक्तों के बीच में भगवान राम याद आ जाते हैं।
असलियत में इस सब के पीछे पुलिस और प्रशासन की ही कमी है। रूट चार्ट बनाते समय एआरएम और आरएम के साथ प्राइवेट बस यूनियन के अध्यक्ष को भी जानकारी देना चाहिए, इसके अलावा जब रूट डायवर्ट किया है, तो डायवर्ट प्वाइंट पर दो सिपाहियों को बैठाना चाहिए। इस सब के साथ यह भी विचार करने की बात है कि कुछ लोगों के लिए पूरे सिस्टम को बदला जाता है, जबकि पूरे सिस्टम को बदलने की जगह कंवरियों को अलग मार्ग की व्यवस्था करनी चाहिए, पर जो सरल है, वह कर देते हैं और आम आदमी जाये भाड़ में।
असलियत में यह लोकतन्त्र नहीं, बल्कि शक्ति तंत्र है, जिसके साथ भीड़ है, उसके लिए न कोई नियम है और न ही कोई कानून, पर शासन-प्रशासन में बैठे लोग यह भूल रहे हैं कि इस देश में आम आदमी से ज्यादा भीड़ किसी के पास नहीं है, जिस दिन वो खड़ा हो गया, उस दिन समूची व्यवस्था बदल कर ही बैठेगा, इसलिए आम आदमी के धैर्य की परीक्षा लेने से बचना चाहिए।