बदायूं शहर के विधायक आबिद रज़ा को वक्फ विकास निगम का अध्यक्ष बनाये जाने को लेकर कई तरह की अफवाहें फैलने की लगी हैं। कानूनी अड़चनों और गुटबंदी के चलते उन्हें अध्यक्ष बनाये जाने में रोड़ा अटका नज़र आ रहा है, जिससे विधायक गुट मायूस है।
गौरतलब है कि 9 दिसंबर को अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री आजम खां ने बदायूं विधान सभा क्षेत्र के सपा विधायक आबिद रज़ा को वक्फ विकास निगम का अध्यक्ष नियुक्त किया था। आबिद रज़ा को वक्फ विकास निगम का अध्यक्ष बनाने की घोषणा होते ही उन्हें दर्जा राज्यमंत्री देने की अफवाह फैल गई, जिससे सैकड़ों लोग उन्हें बधाई देने लखनऊ पहुँच गये, साथ ही बदायूं आगमन पर उनके भव्य स्वागत की तैयारियां भी होने लगी थीं, लेकिन उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने लालबत्ती को लेकर गाइड लाइन जारी कर दी, तो तमाम लोगों के चेहरे उतर गये, वहीँ आबिद रज़ा के विरोधी भी सक्रीय हो गये। यह भी बताया जा रहा है कि वक्फ विकास निगम के अध्यक्ष को दर्जा राज्यमंत्री देने का प्रावधान ही नहीं है।
आबिद रज़ा को अगर, इस बार भी लालबत्ती नहीं मिली, तो उनकी यह फजीहत दूसरी बार होगी, क्योंकि एक बार बरेली के आबिद खां को दर्जा राज्यमंत्री मिलने पर लोग उन्हें बधाई देने पहुँच गये थे और उन्होंने भी बधाई स्वीकार कर मिष्ठान वितरण करा दिया था।
जानकारों का कहना है कि लाभ के दो पदों पर एक व्यक्ति नहीं रह सकता। विधायक को वेतन-भत्ते मिलते हैं, वहीं वक्फ विकास निगम के अध्यक्ष को भी वेतन-भत्ता मिलने का प्रावधान है, इसी वैधानिक समस्या के चलते आबिद रज़ा को अध्यक्ष पद मिलना अब मुश्किल नज़र आ रहा है, लेकिन दूसरी बड़ी वजह पार्टी के अंदर की राजनीति बताई जा रही है। जिलाध्यक्ष बनवारी सिंह यादव लालबत्ती के दावेदार थे, लेकिन आबिद रज़ा बीच में आ गये और वह आज तक लालबत्ती से दूर हैं, इसी तरह मौलाना यासीन उस्मानी को दर्जा राज्यमंत्री देने की घोषणा हो चुकी थी, पर आबिद रजा की जिद के चलते घोषणा के बावजूद उन्हें लालबत्ती नहीं मिली। अब यही सब विरोधी जुट गये हैं कि उन्हें नहीं मिली, तो लालबत्ती आबिद रज़ा को भी नहीं मिलना चाहिए, इसी सब के चलते 14 दिसंबर को आजम खां लखनऊ से आबिद रज़ा को आशीर्वाद दिलाने के लिए दिल्ली सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पास भी ले गये, लेकिन अभी तक कोई सकारात्मक परिणाम नज़र नहीं आ रहा है।
उधर लोकसभा चुनाव तक सांसद धर्मेन्द्र यादव भी कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। बदायूं में लालबत्ती के दावेदार एक दर्जन से अधिक हैं, ऐसे में किसी एक को लालबत्ती मिल गई, तो बाकियों का नाराज़ होना स्वाभाविक ही है, इसीलिए वह लालबत्ती की जंग में किसी के न पक्ष में हैं और न ही किसी के विरोध में। खैर, इस लालबत्ती की जंग में कौन भारी पड़ेगा? यह तो भविष्य में ही पता चलेगा, फिलहाल इस जंग को देखना वाकई, दिलचस्प है।
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