अफसर आते-जाते रहते हैं। कौन आया, कौन गया, इस पर आम आदमी विशेष ध्यान नहीं देता?, लेकिन कुछ अफसरों की कार्यप्रणाली ऐसी होती है, जो आम आदमी के बीच स्वतः ही हीरो बन जाते हैं, ऐसे अफसर के तबादले की खबर दूर गाँव में बैठे ऐसे आदमी को भी दुख पहुंचा देती है, जिसका उस अफसर से कोई लेना-देना न था और न होगा। प्रसंग फिलहाल आईपीएस अधिकारी मंज़िल सैनी को लेकर है। बदायूं के एसएसपी पद पर तैनात मंज़िल सैनी का तबादला शासन द्वारा जनपद जौनपुर के लिए कर दिया गया है।
आईएएस या आईपीएस अधिकारी के स्थान पर आईएएस और आईपीएस अधिकारी ही तैनात किए जाते हैं, लेकिन आम आदमी के बीच हर अधिकारी जगह नहीं बना पाता, इसी लिए किसी के आने-जाने से आम पर कोई अंतर नहीं पड़ता। प्रदेश स्तर पर तो तमाम अफसर हैं, पर बात सिर्फ बदायूं जनपद में तैनात रहने वालों की करें, तो मेरे डेढ़ दशक से लंबे पत्रकारिता जीवन में ऐसे अवसर बहुत कम आए हैं, जब किसी के तबादले पर आम आदमी मायूस हुये हों। पिछले दिनों आईएएस अधिकारी एम. देवराज का जिलाधिकारी बदायूं पद से तबादला होने पर आम आदमी ने गाँव-गाँव प्रदेश सरकार का पुतला फूंका, वहीं अधीनस्थ अफसरों और नेताओं ने घी के दिये जलाए। एसएसपी मंज़िल सैनी का तबादला होने पर आज कमोवेश वही हालात हैं। सरकार का पुतला तो किसी ने नहीं फूंका, लेकिन उनके तबादले को लेकर आलोचना हर आदमी कर रहा है। सुना है लोकतन्त्र में जनभावनाओं के अनुसार सरकार को काम करना चाहिए, पर यहाँ तो फिलहाल विपरीत ही दिखाई दे रहा है। तबादला आदेश दो दिन पहले ही आ चुका है। आज मंज़िल सैनी जा रही थीं, तो उनके सम्मान में विदाई समारोह आयोजित किया गया, जिसमें अफसरों, वकीलों और पत्रकारों ने उनकी कार्यप्रणाली को यादगार बताया। मंज़िल सैनी ने खुद के बारे में बताते हुये कहा कि उनके पिता देहली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर थे, जिन्होंने दो मंत्र दिये। पहला यह कि चारों तरफ से मायूस आदमी पुलिस के पास आता है, जिसकी परेशानी के बारे में अवश्य सुनना चाहिए और हर करना चाहिए। दूसरा भ्रष्टाचार से दूर रह कर ही सब से नज़रें मिलाई जा सकती हैं, इसलिए भ्रष्टाचार से दूरी बना कर रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जो भी इसका पालन करेगा, वो बेहतर काम कर पाएगा।
ईमानदार और काम करने वाले अफसर राजनीतिक झंझटों से दूर शांत पोस्टिंग चाहते हैं। मंज़िल सैनी का सीबीआई में जाने का आदेश हो गया है। प्रदेश सरकार की ओर वह रिलीव होने के लिए नज़रें गड़ाए हुये हैं, इसलिए नए तैनाती स्थल जौनपुर जाने के आसार कम हैं।
एसपी के रूप में चाहिए गुलाम
समाजवादी पार्टी के एक ताकतवर स्थानीय नेता की हर बात न मानने के कारण मंज़िल सैनी के सब गुण शासन द्वारा नज़र अंदाज़ कर दिये गए। इस नेता ने उनके तबादले को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था, जिससे आम तौर पर यह चर्चा होने लगी है कि एसपी के रूप में इस नेता को गुलाम चाहिए, जो मिल गया, तो आम आदमी का क्या होगा?