उम्र का एक पड़ाव पार करने के बाद चाहते हुए और न चाहते हुए बहुत कुछ पीछे छूटने लगता है, लेकिन इंसान का स्वभाव है कि वह कुछ भी छोड़ना नहीं चाहता। जीवनपर्यन्त सब कुछ साथ लेकर चलना चाहता है। कहते हैं कि हर जीव को अपने बच्चे अपनी जान से भी प्रिय होते हैं, लेकिन इंसान ऐसा प्राणी है, जो अपने सम्मान के लिए बच्चों की बलि भी देता रहा है। समाजवादी पार्टी आजकल इसी इंसानी स्वभाव का शिकार हो रही है।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार है और पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश यादव मुख्यमंत्री हैं, इससे पहले सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में कई बार शासन कर चुके हैं। लोग समझते हैं कि उनके पास शासन करने का लंबा राजनैतिक अनुभव है। ऐसा होता, तो वह अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव से हर शाम अनुभव बांटते। अखिलेश को राजनीति का पारंगत योद्धा बनाने में अनुभव से मिले अपने ज्ञान का प्रयोग करते, लेकिन ऐसा करने की बजाए वह मीडिया में खुल कर सरकार के विरुद्ध बोल रहे हैं, क्योंकि उन्होंने हमेशा शासन-सत्ता का एक जाति के हित में ही दुरूपयोग किया है।
सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सही दिशा में काम कर रहे हैं। मुलायम सिंह यादव के सरकार विरोधी शब्दों से साफ़ है कि उनके ख़ास चापलूसों का अखिलेश यादव के दरबार में प्रवेश वर्जित है, साथ ही प्रदेश और जनपदों में तैनात अधिकारी भी उनके ख़ास चापलूसों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं, क्योंकि अधिकारी बेलगाम हो गये होते, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की नज़र और उनकी कार्रवाई से बच नहीं पाते। साफ़ है कि अधिकारी अखिलेश यादव के निर्देशों के अनुसार सही काम कर रहे हैं। असलियत में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव सरकार और ब्यूरोक्रेट के विरुद्ध खुल कर बयान देकर सरकार और ब्यूरोक्रेट पर दबाव बनाना चाहते हैं। वह यह सन्देश देना चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश के वह सुपर मुख्यमंत्री हैं और नेता-अधिकारी अखिलेश यादव के दरबार में हाजिरी देने से पहले उनके दरबार में हाजिरी दें, फिर भी उनके बयानों को नेता और अधिकारी ख़ास अहमियत नहीं दे रहे थे। घर के बड़े बुजुर्ग कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं, ऐसे ही उनके बयानों को टाला जा रहा था, इसलिए बयान के साथ अफसरों का तबादला करा कर इस बार वह यह संकेत भी देना चाहते हैं कि घर के बुजुर्ग की तरह वह सिर्फ बड़बड़ा नहीं रहे हैं, उन्हें सम्मान चाहिए और वह दो, वरना कुर्सी पर नहीं रह पाओगे। सम्मान से उनका आशय यही है कि उत्तर प्रदेश में फैले उनके ख़ास लोगों को किसी भी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए, जबकि अखिलेश यादव के अधिकारियों को निर्देश हैं कि विधायकों को भी गलत कार्य करने की छूट नहीं देनी है। मुलायम सिंह यादव भले ही पार्टी के सुप्रीमो और अखिलेश यादव के पिता हैं, लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं और उनके ही निर्देशों का पालन करने के लिए अधिकारी बाध्य हैं, जो मुलायम सिंह यादव के दुःख का कारण कहा जा सकता है।
सपा सुप्रीमो का कहना है कि नेताओं ने अपनी पसंद के अधिकारियों को तैनात करा लिया है, जो जनहित में काम नहीं कर रहे हैं। अगर, वाकई ऐसा होता, तो जिला स्तरीय नेता उनके पास फ़रियाद लेकर नहीं पहुँच रहे होते। साफ़ है कि अधिकारियों की तैनाती दबाव में नहीं हो रही है और अधिकारी दबाव में नाजायज़ काम भी नहीं कर रहे हैं। अखिलेश यादव ने सही कार्य करने की छूट दे रखी है, जिससे मुलायम शासन में आईएएस और आईपीएस से अपने घरों पर हाजिरी दिलाने वाले नेता परेशान हैं। सरकार आने पर तमाम उल्टे-सीधे काम कर तिजोरी भरने वालों की हसरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं, ऐसे ही लोग सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के कंधे पर सवार हो अफसरों पर दबाव बना कर सत्ता की मलाई हजम करने की कोशिश में लगे हुए नज़र आ हैं।
अखिलेश यादव जिस प्रकार सरकार चला रहे हैं, वो सही रास्ता है। कट्टरपंथी अंदाज़ में बदले की राजनीति करने वाले अधिक दिनों तक टिके नहीं रह सकते। अखिलेश यादव सर्व समाज के लिए कुछ अच्छा करने की सोच वाले युवा हैं, वह विरोधियों को फंसाने की राजनीति नहीं करना चाहते, तो इसमें गलत क्या है? एक-दूसरे को फंसाने का सिलसिला कहीं तो रुकना चाहिए और जब तक यह सिलसिला नहीं रुकेगा, तब तक आम आदमी की परेशानियों की ओर किसी का ध्यान भी नहीं जाएगा। वर्तमान से सालों पीछे चल रहे उत्तर प्रदेश को अखिलेश यादव की सोच से ही आगे लाया जा सकता है, लेकिन पार्टी के ही कुछ लोगों की समस्या यह है कि अगर, वह विरोधियों को मार नहीं सकते, तो सत्ता मिलने का अर्थ ही क्या है? ऐसी सोच रखने वालों के नेता मुलायम सिंह यादव हैं, तभी उन्हें सरकार में सिर्फ कांटे ही नज़र आ रहे हैं। सही तो यह होता कि मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश को अखिलेश यादव के सहारे छोड़ कर केंद्र में राजनीति करते और पार्टी को विस्तार देने की दिशा में प्रयास करते, पर उत्तर प्रदेश में खुद की धमक कम होने का दुःख पुत्र के मुख्यमंत्री बनने की खुशी पर भारी नज़र आ रहा है।
ध्यान देने की प्रमुख बात यह भी है कि मुलायम सिंह यादव सरकार और ब्यूरोक्रेट के विरुद्ध बयान देते हैं और बाद में पार्टी प्रवक्ता का बयान आता है कि अधिकारी दबाव में कार्य करते हुए पाए गये, तो उनके विरुद्ध कार्रवाई होगी। साफ़ है कि अखिलेश यादव जातिवाद हावी नहीं होने देना चाहते। वह पिता के विरुद्ध तो नहीं बोल सकते, पर सरकार अपने अनुसार ही चलाना चाहते हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश में आज भी जातिवाद नज़र आ रहा है, पर मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल से तुलना की जाये, तो न के बराबर ही है। अखिलेश यादव पूरी तरह मुक्त होकर सरकार चला रहे होते, तो इतना भी नहीं होता, पर दुर्भाग्य कि उनकी राह में पहले दिन से ही तमाम तरह से रोड़े अटकाए जा रहे हैं, जिसका असर उनकी छवि पर भी पड़ रहा है। उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है, फिर भी सरकार और ब्यूरोक्रेट के विरुद्ध लगातार हो रही बयानबाजी से उनके प्रशसंकों की संख्या घटी है। अगर, वह मुक्त होकर शासन कर रहे होते, तो आज उनकी लोकप्रियता का ग्राफ सातवें आसमान पर पहुँच गया होता।
जनहित की दृष्टि से देखा जाए, अखिलेश यादव सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, इसीलिए मुलायम सिंह यादव के प्रशंसक दुखी हैं। अखिलेश यादव के प्रशंसक जातिवादी नहीं हैं, सिद्धांतवादी भी नज़र आते हैं। लोहिया के विचारों के अनुरूप सही मायने में अखिलेश ही सरकार चला रहे हैं। मुलायम सिंह यादव सिर्फ एक जाति के नेता बन कर रह गये, वह समस्त पिछड़े वर्ग के भी नेता नहीं बन पाए और अपने जातिवाद पर समाजवाद का पर्दा डालते रहे। लोहिया के विचार उनके व्यवहार में कभी नहीं झलके। अखिलेश सर्व समाज के नेता बनने की राह पर अग्रसर हैं, इसीलिए सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को सरकार रास नहीं आ रही है और तब तक रास नहीं आयेगी जब तक, सरकार और ब्यूरोक्रेट उनके यादवों को कुछ भी करने की खुली छूट नहीं देंगे।