बदायूं लोकसभा क्षेत्र में यूं तो 15 प्रत्याशी हैं, लेकिन शुरू से ही सपा, बसपा और भाजपा प्रत्याशी के बीच मुख्य मुकाबला माना जा था, पर चुनाव की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे भाजपा प्रत्याशी मुख्य लड़ाई से बाहर होता नज़र आ रहा है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में मुख्य मुकाबला अब सिर्फ सपा और बसपा प्रत्याशी के बीच ही सिमट गया है। हालांकि भाजपा प्रत्याशी पूरी शक्ति के साथ जुटे हुए हैं और मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
बदायूं लोकसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी ने अपने वर्तमान सांसद धर्मेन्द्र यादव को पुनः मैदान में उतारा है। बहुजन समाज पार्टी ने सहसवान निवासी व्यापारी अकमल खां “चमन” को कमान सौंपी है, वहीँ अंतिम पलों में भाजपा ने कस्टम विभाग से स्वेच्छा से सेवा निवृत्त होने वाले वागीश पाठक को टिकट दिया है। इनके अलावा 12 प्रत्याशी और हैं, पर अब तक मुख्य मुकाबला इन्हीं तीनों के बीच था, लेकिन भाजपा हाईकमान बदायूं क्षेत्र को बिल्कुल तवज्जो देता नजर नहीं आ रहा। देश के बाकी हिस्सों की तरह ही यहाँ भी नरेंद्र मोदी के नाम को लेकर आम जनता में दीवानगी है, पर नरेंद्र मोदी के न आने के कारण लोग मायूस हैं। दूसरी पसंद अमित शाह बताये जाते हैं, पर अभी तक अमित शाह के यहाँ आने का कोई कार्यक्रम नहीं आया है, जिससे भाजपा कार्यकर्ता पूरी तरह मायूस नज़र आ रहे हैं। कार्यकर्ताओं के मन का प्रत्याशी न होने और बड़े नेता के न आने से बदायूं क्षेत्र में भाजपा मुख्य लड़ाई से बाहर हो गई है।
समाजवादी पार्टी के लिए बदायूं सीट बेहद अहम है। सपा प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव सपा सुप्रीमो के भतीजे हैं, सो अभी तक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यहाँ दो जनसभाएं कर चुके हैं एवं सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भी आने वाले हैं, जिससे सपा के विरुद्ध यह दुष्प्रचार आम हो गया है कि सपा प्रत्याशी कड़ी लड़ाई के बीच फंस गये हैं, तभी उनके परिजनों को बार-बार आना पड़ रहा है। लोगों का तर्क है कि सपा प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव स्वयं इतने बड़े नेता है, ऐसे में उनके क्षेत्र में मुख्यमंत्री और सपा मुखिया के आने की क्या जरूरत है। इस सब के बीच अपने द्वारा कराए गये विकास कार्यों का उल्लेख कर धर्मेन्द्र यादव अपने वोटों पर कब्जाये जमाए हुए नज़र आ रहे हैं।
भाजपा और सपा के बारे में हो रही तरह-तरह की चर्चाओं के बीच बसपा प्रत्याशी अकमल खां को विरोधी भी कमजोर नहीं मान रहे। अकमल भी हाई-प्रोफाइल प्रचार माध्यमों का सहारा लेने की जगह शांत भाव से डोर-टू-डोर जुटे हुए हैं। उनका समर्थन दलित और मुस्लिम समुदाय से बाहर भी बढ़ता नज़र आ रहा है, जिससे सपा नेताओं की नींद उड़ी हुई है। परिणाम जो भी हो, पर हाल-फ़िलहाल हाथी की मस्त चाल ने सपाइयों की ऐसी नींद उड़ा रखी है कि 16 को परिणाम आने तक दावे से खुद को विजयी घोषित न कर पायेंगे।
खैर, हार-जीत के कयास ही लगाये जा सकते हैं, क्योंकि इस बार मतदाताओं की नब्ज समझ से परे है। मौन मतदाता किस के सिर पर ताज रखेंगे, इसका खुलासा 16 मई से पहले कोई नहीं कर सकता।
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