उत्तर प्रदेश में पिछली बहुजन समाज पार्टी की सरकार, मुख्यमंत्री मायावती और बसपा विधायकों को सर्वाधिक बेईमान बताया जाता था। विधान सभा चुनाव में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा था। प्रदेश के साथ बदायूं की जनता ने भी यह सोच कर सपा प्रत्याशियों को चुना कि यह सब सपा सरकार में नहीं होगा। प्रदेश में सरकार, सरकार का मुखिया और विधायक बदल चुके हैं, लेकिन भ्रष्टाचार की रीति अक्षरशः लागू है। नीति और योजनाओं का क्रियान्वयन कराने वाले अधिकारी बदल गये, पर अंदाज़ बसपा शासन वाला ही लागू है। नेता, अफसर और विधायक सरकारी धन को मिल बांट कर बसपा शासन की तरह ही खुलेआम आज भी हजम कर रहे हैं। ताज़ा मामला बिसौली विधान सभा क्षेत्र का है। विधायक आशुतोष मौर्य उर्फ़ राजू ने अपनी पूरी निधि वाटर सप्लाई सिस्टम लगाने के लिए एक दागी संस्था को दे दी है।
डीआरडीए है विश्वसनीय संस्था
वैसे तो विधायक/सांसद सिर्फ प्रस्ताव ही देते हैं और उन प्रस्तावों पर सभी मानकों की पूर्ति कराने का कार्य अफसरों का होता है, इसीलिए खामी होने पर फंसते भी अधिकारी ही हैं, लेकिन अफसरों के हिस्से में दो-तीन प्रतिशत से ज्यादा कुछ नहीं आता। मोटा माल विधायक और ठेकेदार के हिस्से में ही आता है। विधायक/सांसद किसी भी अनुमन्य संस्था या विभाग को प्रस्ताव दे सकते हैं, लेकिन जिला ग्राम्य विकास अभिकरण (डीआरडीए) माल हजम कराने में विश्वास पात्र सहयोगी संस्था बन गई है, इसलिए अधिकाँश जनप्रतिनिधि डीआरडीए को ही प्रस्ताव देते हैं।
ऐसे होता है गोलमाल
सरकारी सूत्रों का कहना है कि बाबू, अफसर और नेताओं ने मिल कर बाजार मूल्य के अनुपात में लाइट, यात्री शेड, पेयजल स्टैंड, शवदाह गृह, स्मृति द्वार वगैरह के स्टीमेट पाँच गुना ज्यादा मूल्य के बनवा लिए हैं। वाटर सप्लाई सिस्टम की ही बात करें, तो सवा लाख रुपए में लगाया जा सकता है, जबकि स्टीमेट चार लाख रुपए प्रति सिस्टम से भी ज्यादा का है। इस में 60 प्रतिशत विधायक ले लेता है और बाकी रुपए बाबू, अफसर और संस्था मिल कर खा जाते हैं। सवा करोड़ सालाना मिलने वाली निधि में आधी रकम अकेला विधायक और बाकी आधी में से आधी रकम संस्था, अफसर और बाबू हजम कर जाते हैं, मौके पर मुश्किल से एक चौथाई रकम लगाई पाती है, जिसका कोई औचित्य नहीं है।
नियम विरुद्ध हैं प्रस्ताव
वाटर सप्लाई सिस्टम का प्रस्ताव ही नियम विरुद्ध है, क्योंकि बिजली कनेक्शन और उसके रखरखाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। सिस्टम चोरी की बिजली से चलेगा, साथ ही जब रखरखाव की किसी की जिम्मेदारी नहीं है, तो दो-चार महीने बाद ही सब तहस-नहस हो जायेगा, लेकिन विधायक, अफसर, बाबू और ठेकेदार को इससे क्या मतलब?
दागी संस्था को दिया काम
विधायक आशुतोष मौर्य उर्फ़ राजू की निधि से वाटर सप्लाई सिस्टम लगाने का काम दागी संस्था उत्तर प्रदेश सहकारी विधायन एवं शीतगृह संघ को दिया गया है, इस संस्था के विरुद्ध जनपद बदायूं में ही मुकदमा दर्ज कराया गया था, इसलिए सीडीओ और पीडी के साथ संबंधित पटल बाबू की निष्ठा पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है, इसकी जांच शासन स्तर से हो गई, तो सभी के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होना निश्चित है।
इसलिए नहीं होती कार्रवाई
विधायक निधि से कार्य कराने की संस्तुति ग्राम्य विकास मंत्री और आयुक्त के स्तर से दी जाती है। चूँकि शासन स्तर से ही सेटिंग होती है, इसलिए इन संस्थाओं के विरुद्ध शिकायत करने से भी कुछ नहीं होता। जिला स्तर पर इनके विरुद्ध कार्रवाई कोई नहीं कर सकता और शासन स्तर पर इनके विरुद्ध कोई सुनता तक नहीं।
समाप्त होना चाहिए निधि की व्यवस्था
जनप्रतिनिधियों को मिलने वाली निधि का सिर्फ और सिर्फ गोलमाल ही हो रहा है, इसलिए इस निधि पर ही प्रतिबंध लग जाना चाहिए। बिहार सरकार प्रतिबंध लगा चुकी है। विकास कार्य सरकार के स्तर से ही कराये जायें, तो क्षेत्रीय विधायक गुणवत्ता पर निगरानी रखेंगे और कार्य सही होने की संभावना बढ़ जायेगी, पर इस व्यवस्था से तो विधायक खुद ही कठघरे में खड़े हैं, तो निगरानी कौन करेगा?
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बसपा विधायक की निधि में फिर गोलमाल