स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता को लेकर कांग्रेस नेता अजय माकन की ट्विटर पर की गई टिप्पणी ध्यान देने योग्य भी नहीं है, फिर भी बहस छिड़ गई है। भाजपा और कांग्रेस नेता ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर दोनों दलों के समर्थक भी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता पर सवाल खड़ा करने वाले अजय माकन स्वयं उच्च शिक्षित हैं, इसलिए उन्हें भली-भांति ज्ञात ही होगा कि मानव संसाधन विकास मंत्री ही नहीं, बल्कि किसी भी विभाग का मंत्री बनने के लिए संविधान में शैक्षिक योग्यता अनिवार्य नहीं है, ऐसे में अजय माकन किसी भी मंत्री की शैक्षिक योग्यता पर सवाल कैसे खड़ा कर सकते हैं। हाँ अगर, स्मृति ईरानी ने नामांकन पत्र में शैक्षिक योग्यता को लेकर गलत जानकारी दी है, तो उसकी विधिवत शिकायत की जा सकती है और जांचोपरांत जो निष्कर्ष निकले, उसके आधार पर अग्रिम कार्रवाई होनी चाहिए।
खैर, बहस जनप्रतिनिधियों और मंत्रियों की शैक्षिक योग्यता निर्धारित करने को लेकर भी हो रही है। तमाम लोग इस पक्ष में हैं कि जनप्रतिनिधियों और मंत्रियों की शैक्षिक योग्यता अनिवार्य होनी चाहिए। कुछ लोग तो कटाक्ष और व्यंग्य भी करते नज़र आते हैं कि अशिक्षित व्यक्ति लिपिक भी नहीं बन सकता, पर विधायक, सांसद और मंत्री बन सकता है। लोकतंत्र का दुर्भाग्य बताते हुए कुछ लोग दुखी भी नज़र आते हैं, ऐसे लोगों को यह भ्रम है कि ज्ञान और समझ डिग्री से ही मिलती है, जबकि हिंदी में पीएचडी और डी.लिट् की उपाधि लेने वाले बाल्मीकी, कबीर, तुलसी, वेद व्यास, मीरा, सूरदास और रसखान की रचनाओं पर शोध करते हैं, जिनके पास ऐसी कोई डिग्री नहीं थी, फिर भी उनकी रचनाओं पर आधारित परीक्षा में अधिकाँश लोग सौ प्रतिशत अंक पाने में विफल ही रहते हैं, इससे स्पष्ट होता है कि ज्ञान डिग्रियों का बंधक नहीं है, इसके अलावा कोई भी आदर्श भारतीय नागरिक जनप्रतिनिधि हो सकता है, यह भारतीय लोकतंत्र की सब से बड़ी खूबियों में से एक खूबी है, ऐसे में जनप्रतिनिधियों या मंत्रियों के लिए शैक्षिक योग्यता अनिवार्य कर दी जाये, तो फिर लोकतन्त्र कहाँ बचेगा। शिक्षित, अशिक्षित, धनवान, गरीब, सवर्ण, पिछड़े, दलित, काले, गोरे, स्त्री, पुरुष, हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन और ईसाई सहित प्रत्येक भारतीय नागरिक संविधान की दृष्टि से समान हैं, ऐसे में शैक्षिक योग्यता अनिवार्य करते ही समानता समाप्त हो जायेगी, जो भारतीय लोकतंत्र की गरिमा को घटाने के लिए काफी है।
असलियत में शिक्षा के क्षेत्र में भी विकास की गति धीमी रही है, जिससे शिक्षा के स्तर में अपेक्षा कृत सुधार नहीं हो पाया, लेकिन शिक्षा का स्तर बेहतर होता, स्कूल और कॉलेज की संख्या आबादी के अनुपात में होती, तो भी वर्ष 1980, 1970 और 1960 से पहले जन्मे व्यक्ति स्नातक नहीं हो पाते। शिक्षा के क्षेत्र में जैसे-जैसे विकास होता जायेगा, सोच और आर्थिक स्थिति में जैसे-जैसे सुधार होता जायेगा, वैसे-वैसे शिक्षित वर्ग की संख्या बढ़ती जायेगी और भारत में भी एक समय ऐसा आ जायेगा, जब अधिकाँश नागरिक स्नातक और परास्नातक होंगे, तब जनप्रतिनिधि भी शिक्षित होंगे। उस दिन का इंतजार करने के अलावा कोई और विकल्प न है और न ही हो सकता है।
बात स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता पर उठे सवाल की करें, तो विरोधियों के लिए मुददा शिक्षा नहीं, बल्कि स्मृति ईरानी हैं। मंत्रियों की शैक्षिक योग्यता बड़ा मुददा होती, तो पांचवी पास उमा भारती पर सब से पहले सवाल उठता, इसके अलावा मंत्रिमंडल में पांच मंत्री दसवीं पास ही हैं, लेकिन इनका उल्लेख किसी ने नहीं किया, जिससे स्पष्ट है कि स्मृति ईरानी पर व्यक्तिगत हमला बोला गया है। अब हमले के पीछे के कारणों पर दृष्टि डालें, तो वर्तमान में कांग्रेसी नरेंद्र मोदी के बाद अगर, सब से अधिक किसी से चिढ़ते हैं, तो वो स्मृति ईरानी ही हैं, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के सिरमौर राहुल गांधी को अमेठी में जाकर न सिर्फ चुनौती दी, बल्कि घुटनों पर ला दिया। चुनाव समीक्षक तो यहाँ तक कह रहे हैं कि स्मृति ईरानी अमेठी थोड़ी देर से पहुंची। अगर, वह बीस दिन पहले चुनाव प्रचार में जुट गई होतीं, तो जीत कर आतीं। स्मृति चुनाव हार गईं, पर जिस अमेठी लोकसभा क्षेत्र में नेहरू-गांधी खानदान की आज़ादी के समय से ही प्रतिष्ठा उच्चतम शिखर पर रही है, उस
क्षेत्र के गाँव-गाँव में स्मृति ईरानी ने नेहरू-गांधी खानदान की वो वर्षों पुरानी प्रतिष्ठा तार-तार कर दी। इससे पहले वह कपिल सिब्बल से दिल्ली में भिड़ चुकी हैं। एक टीवी कार्यक्रम में चर्चा के दौरान कांग्रेस के ही संजय निरुपम से तीखी बहस हो चुकी है, इस सबके अलावा वह प्रखर बुद्धि की स्वामिनी हैं। वह अधिकांशतः अकाट्य बात करती हैं, जिससे बहस के दौरान उनके विरोधी अक्सर तर्कहीन हो जाते हैं, इन सब बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार करें, तो निष्कर्ष यही निकलता है कि स्मृति ईरानी की शैक्षिक योग्यता पर विवाद पैदा कर विरोधी उन्हें राजनैतिक हाशिये पर धकेलना चाहते हैं। दूसरी ओर अभिनय की दुनिया से राजनीति में आईं स्मृति ईरानी ने बहुत जल्द बड़ा कद हासिल कर लिया। उनकी मेहनत, लगन, और व्यवहार को नज़र अंदाज़ कर भाजपा के भी तमाम शीर्ष नेताओं को उनसे ईर्ष्या होना स्वाभाविक है। स्मृति ईरानी अपनों की ईर्ष्या और विरोधियों की रंजिश के चलते निशाने पर हैं। शैक्षिक योग्यता कोई बड़ा मुददा नहीं है।