- घोटाले में कार्रवाई करने की बजाये, हिस्सा लेकर घोटाला दबाने का आरोप
मनरेगा घोटाले में एक आईएएस अधिकारी सहित तीन अन्य के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत कर विवेचना करने का आदेश बदायूं के मुख्य दंडाधिकारी ने पारित किया है, जिसकी भनक लगते ही समूचे प्रशासनिक अमले में हडकंप मच गया है। आरोप है आईएएस अधिकारी सहित अन्य सभी आरोपियों ने मनरेगा घोटाले में कार्रवाई करने की बजाये, अपना हिस्सा लेकर घोटाले को दबा दिया। आरोपी आईएएस अधिकारी वर्तमान में हाथरस के जिलाधिकारी पद पर तैनात हैं।
बदायूं निवासी पत्रकार बीपी गौतम ने इस घोटाले का खुलासा किया है। बदायूं में मुख्य विकास अधिकारी के पद पर तैनात रहे आईएएस सूर्यपाल गंगवार पर आरोप है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में कई अनियमित कार्य किये हैं, जिससे उनकी निष्ठा और कर्तव्यपरायणता पर प्रश्नचिन्ह लगा नज़र आ रहा है। आरोप है कि सूर्यपाल गंगवार ने बदायूं के मुख्य विकास अधिकारी के रूप में 29 जुलाई 2012 को मुरादाबाद-फर्रुखाबाद मार्ग पर वृक्षारोपण के कार्य का निरीक्षण किया, जिसमें धन का दुरुपयोग होना पाए जाने पर 30 जुलाई 2012 को पत्रांक संख्या- 3925 के द्वारा जिला ग्राम्य विकास अभिकरण के परियोजना निदेशक कृपाराम सिंह को उत्तरदायी अधिकारियों/कर्मचारियों से नियमानुसार वसूली एवं उनके विरुद्ध सम्बंधित थाने में आईपीसी की सुसंगत धाराओं के अंतर्गत तत्काल प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने का आदेश जारी किया था, लेकिन 30 जुलाई 2012 को ही पत्रांक- 3914 के अंतर्गत इसी संबंध में एक और आदेश जारी कर दिया, जिसमें उत्तरदायी अधिकारियों/कर्मचारियों से नियमानुसार वसूली एवं उनके विरुद्ध विभागीय तथा नियमानुसार कानूनी कार्यवाही कराने को कहा गया। एक ही प्रकरण में स्वयं ही निरीक्षण करने के बावजूद दो आदेश करने से सूर्यपाल गंगवार की निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लग गया। दूसरे आदेश में भी धन का दुरुपयोग मानते हुए वसूली और कार्यवाही का आदेश तो दिया गया, पर एफआईआर का उल्लेख नहीं किया गया, जिससे धन का दुरुपयोग करने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों से उनकी सांठ-गांठ होने की संभावना दिख रही है। प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि उक्त आदेशों में एक आदेश पीडी के पास 16-08-2012 को पहुंचा और दूसरा आदेश 6-08-2012 को पहुंचा, जिससे साफ है कि आदेश पिछली तारीख में किया गया है, साथ ही सूर्यपाल गंगवार ने ही 05-09-2012 को वन विभाग के लिए तीस लाख रुपए की किश्त मंजूर कर 06-09-2012 को जारी भी कर दी। इसके अलावा पीडी ने एई को सीडीओ के पहले आदेश के क्रम में एफआईआर कराने का आदेश दिया, लेकिन एई ने पीडी के आदेश का पालन नहीं किया और न ही पीडी ने आदेश का पालन कराने में रुचि ली।
इसी प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि बिल्सी विधानसभा क्षेत्र के विधायक मुसर्रत अली द्वारा अपने क्षेत्र में विकास कार्य कराने हेतु 1/8/20/12, 3/12/2012 और 20/12/2012 को प्रस्ताव उपलब्ध कराये गए थे, लेकिन सूर्यपाल गंगवार ने पद पर रहते हुए अंत तक धन अवमुक्त नहीं किया। आरोप है कि सूर्यपाल गंगवार द्वारा विकास विभाग और डीआरडीए में कमीशन निश्चित होने के बाद धन अवमुक्त करने की परंपरा बनाने की आशंका है, तभी उन्होंने धन अवमुक्त नहीं किया। परेशान होने के बाद विधायक ने धन अवमुक्त न होने का मुद्दा विधानसभा में उठाया, तो वर्तमान सीडीओ ने धन तत्काल अवमुक्त कर दिया। धन अवमुक्त करने में कोई वैधानिक समस्या नहीं थी, इसलिए सूर्यपाल गंगवार की निष्ठा पर इस मामले में भी प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है।
इसी तरह 29/7/2012 को ही विकासखंड म्याऊं की ग्राम पंचायत चितौरा धनौरा में मिट्टी कार्य का निरीक्षण किया, जिसमें 147875 रुपये की धनराशि का दुरुपयोग सिद्ध करते हुए 30/7/2012 को परियोजना निदेशक कृपाराम सिंह को ही उत्तरदायी अधिकारियों/कर्मचारियों व प्रधान से नियमानुसार वसूली व आवश्यक कार्यवाही करने का आदेश दिया गया, साथ ही तकनीकी सहायक को सेवा मुक्त करने का भी आदेश दिया गया, पर उस आदेश पर भी आज तक कार्यवाही नहीं की गयी है।
इसके अलावा बिल्सी विधानसभा क्षेत्र में श्रम एवं निर्माण संघ बरेली के द्वारा विधायक निधि के अपूर्ण कार्यों के सम्बन्ध में सूर्यपाल गंगवार ने 7/3/2013 को परियोजना निदेशक कृपाराम सिंह को नियमानुसार विधिक और विभागीय कार्यवाही करने का निर्देश दिया, जिस पर परियोजना निदेशक ने डीआरडीए के सहायक अभियंता, अवर अभियंता और खंड विकास अधिकारी, अम्बियापुर सहित तीन सदस्यीय समिति से गुणवत्ता के सम्बन्ध में आख्या मांगी, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि डीआरडीए के सहायक अभियंता दिनेश कुमार और अन्वेषक (तकनीकी) कमल मिश्र ने कार्यों की जांच कर आख्या दी, जबकि तीन सदस्यीय कमेटी में कमल मिश्र का नाम ही नहीं था, इसके बावजूद परियोजना निदेशक कृपाराम सिंह ने थाना बिल्सी में कार्यदायी संस्था के विरुद्ध घोटाले का मुकद्दमा पंजीकृत करा दिया, जबकि उक्त संस्था ने कार्य पूर्ति का प्रमाण पत्र जारी कर अभी तक बकाया रुपये की मांग ही नहीं की है, तो घोटाला कैसे माना जा सकता है, जिससे पीडी परियोजना निदेशक कृपाराम सिंह की निष्ठा पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है।
बीपी गौतम ने पहले जनहित में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक-बदायूं से उक्त मामले में मुकदमा पंजीकृत करने की मांग की, लेकिन पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया, इसके बाद बीपी गौतम ने आईएएस सूर्यपाल गंगवार, जिला ग्राम्य विकास अभिकरण के परियोजना निदेशक कृपाराम सिंह, डीआरडीए के एई दिनेश कुमार, अन्वेषक (तकनीकी) कमल मिश्र एवं वन विभाग व मनरेगा के मिटटी कार्य आदि में घोटाला करने वालों के साथ अन्य समस्त दोषियों के विरुद्ध संबंधित धाराओं में मुकद्दमा पंजीकृत कर कार्यवाही कराने का बदायूं के मुख्य दंडाधिकारी की अदालत में आग्रह किया, जिस पर लंबी सुनवाई और बहस के बाद आज धारा 156 (3) सीआरपीसी के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत कर विवेचना करने का आदेश मुख्य दंडाधिकारी ने पुलिस को दिया है, जिससे प्रशासनिक अमले में हडकंप मच गया।