भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी से आम आदमी जूझ रहा है। कानून व्यवस्था के हालात भी दयनीय हैं, जिससे आम आदमी भयग्रस्त है। इससे भी बड़े दु:ख की बात यह है कि सुधार की दिशा में कदम भी नहीं उठाये जा रहे हैं। जब दु:ख के क्षणों में यह आस रहती है कि आने वाला कल अच्छा होगा, तो जीवन के प्रति मोह और रोमांच बना रहता है, लेकिन कांग्रेस की नीतियों और कार्यप्रणाली से नहीं लगता कि उसके पास आने वाले कल को सही करने की कोई योजना है। कांग्रेस के अधिकांश मंत्री भ्रष्टाचार के दलदल में गर्दन तक धँसे हुये हैं, इसलिए आम आदमी ने कांग्रेस से सुधार की अपेक्षा करनी ही बंद कर दी है और जिस कांग्रेस से आम आदमी को कोई अपेक्षा ही नहीं है, उसकी चर्चा करना व्यर्थ ही है।
लोकतंत्र में सरकार का मतलब प्रधानमंत्री या मंत्रीमण्डल नहीं होता। सरकार में विपक्ष की भूमिका भी सरकार से कम नहीं होती। माना तो यहाँ तक जाता है कि सही मायने में लोकतंत्र विपक्ष से ही चलता है। सत्ता की दावेदारी पर जन्मसिद्ध अधिकार समझने वाली भारतीय जनता पार्टी विपक्ष की भूमिका में सिर्फ कागजों में ही नज़र आती है, क्योंकि कुछ करने की बात तो बहुत दूर, वास्तव में संसद में विपक्ष की भूमिका में भी नज़र नहीं आती। महिला आरक्षण विधेयक को सोनिया गांधी ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया, तो उन्होंने लोक सभा में पास करा कर खुद को महान घोषित करा लिया, पर भाजपा ने आज तक उस विधेयक की चर्चा तक नहीं की है। भाजपा जनलोकपाल के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ ही खड़ी नज़र आती है, जबकि भाजपा चाहती, तो संशोधन के बिना ही जनलोकपाल विधेयक पास होकर कानून का रूप ले चुका होता। इसी तरह भ्रष्टाचार, महंगाई, अशिक्षा, बीमारी, गरीबी, यातायात, महिला उत्पीड़न, बाल उत्पीड़न, बेरोजगारी और वन्य जीवों को लेकर भाजपा आज तक उग्र नज़र नहीं आई है। सरकार के मंत्री जैसा चाह रहे हैं, वैसा काला-सफ़ेद कर रहे हैं। आस्था के मुद्दे पर देखा जाये, तो भाजपा ने गंगा की गंदगी पर संसद की कार्रवाई में कभी व्यवधान नहीं डाला और श्रीराम के मंदिर के सवाल को भी न्यायालय के आधीन बताकर टाल जाती है। सत्ता मिलने पर सहयोगियों के दबाव में मुद्दे को उठा कर परे रख देती है, जबकि सत्ता पाने का एकमात्र उद्देश्य कानून बना कर श्रीराम के मंदिर का निर्माण कराना ही था, लेकिन सत्ता के लिए श्रीराम को भाजपा ने नज़रंदाज़ कर दिया। कश्मीर की धारा 370 आज भाजपाइयों को याद ही नहीं होगी। खैर, यह सब उल्लेख करने का आशय यह है कि देश का आम आदमी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। सरकार का नज़रंदाज़ करना समझ आता है, पर विपक्षी भाजपा का मौन समझ से परे है। इस सब के बीच लोक सभा में भाजपा की विपक्ष की तेजतर्रार नेता सुषमा स्वराज एक काल्पनिक फिल्म और एक गाने के पीछे पड़ गई हैं। उन्होंने फिल्म ‘ओ माई गॉड’ और ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ के एक गाने पर अपनी आपत्ति जताते हुए संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में भी उठाने की चेतावनी दी है। यहाँ यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि इस देश में फिल्म बड़ी समस्या है या भ्रष्टाचार, महंगाई, अशिक्षा, बीमारी, गरीबी, यातायात, महिला उत्पीड़न, बाल उत्पीड़न, बेरोजगारी वगैरह, जबकि फिल्म ‘ओ माई गॉड’ में ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करते हुये पाखंड के विरुद्ध आवाज उठाई गई है, जिसकी सराहना होनी चाहिए। फिल्म को आपत्तिजनक मान भी लिया जाए, तो भी यह मुद्दा इतना गंभीर नहीं है, जिसे भाजपा की विपक्ष की नेता को संसद में उठाना पड़े। फिल्म या गाना आपत्तिजनक है या नहीं, यह निर्णय फिल्म सेंसर बोर्ड और दर्शकों का होना चाहिए। बेहतर होगा कि भाजपा शीतकालीन सत्र में गंभीर मुद्दों को उठाये और इस देश व समाज का भला करने में अपना योगदान दे।
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