प्रदेश और देश में राजनैतिक बयार जिस दिशा में बहने लगती है, बदायूं की भी राजनीति उस दिशा में ही सरकने लगती है। जी हाँ, रामसेवक सिंह पटेल भारतीय जनता पार्टी का शीघ्र ही हिस्सा हो सकते हैं, जिससे तमाम लोग गदगद हैं, तो तमाम लोगों की नींद उड़ गई है।
नरेंद्र मोदी भाजपाइयों और संघियों के बीच आज लोकप्रिय हैं, लेकिन रामसेवक सिंह पटेल दो दशक पहले से उस छवि को धारण किए हुये हैं। नरेंद्र मोदी की ही तरह रामसेवक सिंह पटेल के साथ भी ट्रेन कांड जुड़ा हुआ है, जिसमें तमाम बेकसूरों की जान गई थी। भाजपा जब जवान थी, तब पटेल की तूती बोलती थी, साथ ही क्षेत्र में भी उनका अपना बर्चस्व है, जो आज भी कायम है। भाजपा में नेतृत्व गलत हाथों में पहुंचा, तो रामसेवक जैसे कट्टर भाजपाइयों को किनारे लगा दिया गया, लेकिन निर्दलीय लड़ कर रामसेवक ने भाजपा प्रत्याशी से बीस गुना ज्यादा वोट हासिल किए और अपनी धमक प्रदेश स्तर तक कायम कर दी थी। बाद में उमा भारती ने जनशक्ति पार्टी बनाई, तो उसके टिकट पर चुनाव लड़े और प्रदेश में जनशक्ति के एक मात्र विधायक चुने गये, पर बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार आने पर उसमें शामिल हो गये। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले हुये परिसीमन में उनकी बिनावर सभा क्षेत्र ही समाप्त हो गई, जिससे बदायूं विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लड़े, लेकिन दो हिंदुत्ववादी नेताओं के टकराने से सपा प्रत्याशी जीत गया। अब डेढ़ दशक के बनवास के बाद वह भाजपा में पुनः लौट सकते हैं। कल क्षेत्र से आए तमाम समर्थकों के बीच उन्होंने ऐसे संकेत भी दिये, जिससे समर्थक गदगद हैं, पर कुछ स्वयं-भू नेताओं की नींद उड़ गई है।