श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि नागपंचमी नागों को समर्पित है। इस पर्व पर व्रतपूर्वक नागों का पूजन होता है। नागों का मूलस्थान पाताललोक प्रसिद्ध है। गरुड़पुराण, भविष्यपुराण, चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता, भावप्रकाश आदि ग्रंथों में नागसंबंधी विविध विषयों का उल्लेख मिलता है। पुराणों में यक्ष, किन्नर और गन्धर्वों के वर्णन के साथ नागों का भी वर्णन मिलता है। भगवान विष्णु की शय्या शोभा नागराज शेष हैं। भगवान शिव और गणेश जी के अलंकरण में भी नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस प्रकार अन्य देवताओं ने भी नागों को धारण किया है। नागदेवता भारतीय संस्कृति में देवरूप में स्वीकार किए गए हैं।
पूजन विधि: नागपंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। तत्पश्चात यह प्रार्थना करें-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
प्रार्थना के बाद गायत्री ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात् का जप करें।
लाभ: इस प्रकार प्रार्थना करने से सर्प भय दूर होता है, काल सर्प दोष का निवारण होता है, राहू और केतू प्रसन्न होते हैं।