मैं राजनीति हूं। मेरा नाम सुनते ही जैसे आपने मुंह सिकोड़ लिया, वैसे ही बाक़ी सब भी नाक-भौं सिकोडऩे लगते हैं, पर आपने कभी यह सोचा कि मेरी गलती क्या है? आप क्यूं सोचेंगे, मेरी गलती के बारे में, क्योंकि आप तो उन्हीं लोगों की संतान हो, जो बलात्कारी से ज्यादा पीड़ित महिला से घृणा करते रहे हैं। है न! कुछ गलत कह दिया क्या? हां, सच्चाई तो सभी को कड़वी ही लगती है। मैं आप लोगों की तरह चेहरे देख कर बात नहीं कर सकती। जो है, वह स्पष्ट ही कहती हूं। हां, यह सही है कि अब तक मेरे साथ हजारों लोग बलात्कार कर चुके हैं, पर इसमें मेरा कोई दोष नहीं है, क्योंकि यह आपका बनाया हुआ नियम है कि पिता, भाई और पति के रूप में स्त्री की रक्षा पुरुष ही करता है, आप मेरी रक्षा नहीं कर पाये, तो आपकी नपुंसकता मेरा गुनाह कैसे कही जा सकती है?, साहस और शक्ति खो देने के कारण अपनी नपुंसकता छिपाने के लिए आप बलात्कार की पीड़ित स्त्री से ही घृणा करने लगते हैं, जबकि मैं मन से आज भी सच, न्याय और ईमानदारी की पुजारिन हूं। आप मेरी मानसिक स्थिति नहीं समझ सकते, क्योंकि आप तो उसी समाज के अंग हो, जो रावण के जबरन छूने पर पतिव्रता सीता को घर से निकाल देता है।
आप मेरे बारे में यही सोचते होंगे कि मैं शुरू से ही ऐसी हूँ। . . . नहीं, मेरी प्रकृति तो आज भी वैसी ही है, जैसी शुरू में थी। शुरू में आज की तरह मेरे कपड़ों पर भी दाग नहीं थे, कपड़े भी एक दम झकाझक सफेद थे, बिल्कुल दूध की तरह। मेरे दामन पर आज जो दाग दिखाई दे रहे हैं, वह मेरी इच्छा से नहीं लगे हैं। आपके भाईयों ने ही जबरन लगाये हैं, लेकिन मुझे अपने ऊपर लगे दाग देख कर बिल्कुल भी रोना नहीं आता, क्योंकि बलात्कारी प्रेम या सम्मान थोड़े ही करते हैं। मुझे दु:ख इस बात का है कि आप अपने बलात्कारी भाईयों से घृणा करने की बजाये, मुझ से घृणा करते हो। अगर, आप अपने बलात्कारी भाईयों से घृणा करने लगें, घर-परिवार से निकाल कर उनका सामाजिक बहिष्कार कर दें, तो समय के साथ मेरे कपड़ों पर लगे दाग भी छूट जायेंगे। मुझे पता है कि आप ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि आप अपने बलात्कारी भाईयों से भी अधिक स्वार्थी हैं, तभी उनके छोटे-छोटे प्रलोभनों पर आप आंख बंद कर उन्हें चुन लेते हैं और वह मेरे साथ निश्चिंत होकर लगातार बलात्कार करते रहते हैं। शुरू में मेरी ओर बुरी नजर से देखने वालों की आंखें निकालने के लिए समूचा जनसमूह खड़ा हो जाता था, पर आज वह स्वार्थी नजर आ रहा है, इसीलिए मेरे साथ बारी-बारी से बलात्कार हो रहा है।
मेरी दीनहीन अवस्था आज आपके कारण है, जबकि मेरा जन्म ऋषि-मुनियों की घनघोर तपस्या के बाद हुआ था, मैं भी रजवाड़ों में पली-बढ़ी हूँ। मेरी रक्षा के लिए लोगों ने अपने बेटों की बलि तक चढ़ा दी थी, पूरे परिवार को त्याग दिया था, अपना ऐश्वर्य और वैभव छोड़ कर अभावग्रस्त जीवन स्वीकार किया था, लेकिन मेरे कपड़ों पर तुम्हारे पूर्वजों ने दाग नहीं लगने दिया। मुझे मिला वरदान मेरा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि ऐश्वर्य और वैभव मेरे साथ ही रहते हैं, जिससे उस समय भी बलात्कारियों की मुझ पर नजर रहती थी, पर यह मेरा सौभाग्य ही था कि उस समय के शक्तिशाली बलात्कारियों को जनसमूह कभी भी प्रेम नहीं करता था। मुझ पर बुरा वक्त पहले भी आता रहा है। समय चक्र ने मुझे मुगलों और हूणों की गोद में लाकर बैठा दिया, उन्होंने मेरा हर तरह से शोषण किया, पर मैं फिर भी न बदली। अंग्रेजों ने भी बलात्कार किया, पर मेरी सोच फिर भी न बदली, लेकिन इन बलात्कारियों ने मेरे कपड़े तार-तार कर दिए, जिससे पूरा शरीर दिखने लगा। लगातार और लंबे समय तक बलात्कारियों के चंगुल में रहने के कारण एक बार तो मैंने यह आशा ही छोड़ दी थी, कि अब मैं कभी मुक्त भी हो पाऊंगी, पर अचानक मुझे बचाने की आवाजें सुनाई देने लगीं, जिससे मेरा साहस बढऩे लगा, फिर मैं सोचने लगी कि खोये हुये सम्मान के साथ नये वस्त्र भी धारण करने को मिल सकते हैं . . . और समय के साथ वह दिन भी आ गया, पर जो मेरे सम्मान की आजादी के लिए आवाज बुलंद कर रहे थे, उन्हीं लोगों ने मेरा फिर सामूहिक बलात्कार किया और मेरे हृदय रूपी आशियाने के दो टुकड़े करा दिये। मैं बुरी तरह टूट गयी, क्योंकि इस बार अपनों ने बलात्कार किया। इस सबके बाद भी 15 अगस्त 1947 को मैं यह सोच कर खुश थी कि अब मेरे कपड़ों की ओर कोई कीचड़ नहीं उछाल पायेगा और इंतजार करने लगी कि मेरे बेटे शीघ्र ही मुझे नये वस्त्र पहनाकर, ऊंचे सिंहासन पर बैठा कर मेरी पूजा-अर्चना करेंगे, लेकिन आज तक किसी ने मेरे बारे में सोचा तक नहीं है। नये वस्त्रों की तो बात ही छोडिय़े, किसी ने वर्षों से फटे हुए कपड़ों में पैबंद लगाने की बात तक नहीं की। उल्टा सभी मुझ से ही घृणा करने लगे हैं। अब तक मैं चुप रही, पर अब मैं और नहीं सह सकती, क्योंकि स्त्री होना मेरा गुनाह नहीं हो सकता। गुनहगार बलात्कार करने वाले हैं और मूक दर्शक बनकर देखने वाले आप सब लोग नपुंसक हो।
आप इस दंभ में ही जिये जा रहे हो कि शारीरिक बनावट से पुरुष हो, तो नपुंसक कैसे हो सकते हो। मुझे इसी बात का दु:ख है, कि पुरुषत्व कर्म में दूर-दूर तक नहीं है, फिर भी अपने पुरुषत्व पर इतरा रहे हो। इतराते रहो, लेकिन अपनी सच्चाई आप भी अच्छी तरह जानते हो। मुझे अब विश्वास नहीं है, कि आप मेरे लिए कुछ करोगे, लेकिन मुझे यह अटूट विश्वास अब भी है कि एक दिन फिर कोई गांधी और सुभाष जैसा मेरा चाहने वाला बेटा पैदा होगा, जो बलात्कारियों को मार भगायेगा और मुझे नये वस्त्र पहना कर ऊंचे सिंहासन पर बैठायेगा। तब श्रेय लेने आये, तो मैं भी आप सब नपुंसकों को घर में नहीं घुसने दुंगी . . . पर तुम जानते हो कि मैं ऐसा भी नहीं कर पाऊँगी, क्योंकि मैं स्त्री हूं और स्त्री को किन्नर भी बाकी बच्चों की तरह ही प्रिय होते हैं। खुश रहो मेरे प्रिय किन्नरों।