बदायूं महोत्सव की मार आम आदमी पर ही पड़ी है। महोत्सव में अधिकारियों के मस्त होने के कारण पीड़ित और भी त्रस्त हैं। दूर ग्रामीण क्षेत्रों से आये गरीब बुजुर्ग और महिलायें मुख्यालय पर कार्यालयों के सामने बैठ कर शाम तक अधिकारियों का इंतजार करते देखे जा सकते हैं और अधिकारियों के न मिलने के कारण मायूस होकर तन्त्र को कोसते हुए शाम को लौट जाते हैं।
प्रशासनिक मदद से चंदे के नाम पर की गई अवैध वसूली से बदायूं महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। महोत्सव के आयोजकों पर सत्ताधारियों का हाथ होने के कारण जनपद के वरिष्ठ अधिकारी रात-दिन महोत्सव में ही गुजार रहे हैं, जिससे आम आदमी बेहद परेशान है। ग्रामीण क्षेत्रों से प्रतिदिन सैकड़ों परेशान लोग अधिकारियों के पास फ़रियाद लेकर मुख्यालय आते हैं। कार्यालयों में अधिकारियों के न मिलने पर मायूस होकर कार्यालयों के सामने ही बैठ जाते हैं और देर शाम तक इन्तजार कर थकहारे लौट जाते हैं। इनमें तमाम लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके पास किराए तक के पैसे नहीं होते, साथ ही कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो प्रतिदिन मजदूरी कर परिवार का किसी तरह भरण-पोषण कर रहे होते हैं, ऐसे गरीब कर्जदार भी हो जाते हैं और अधिकारियों के न मिलने के कारण उनका काम भी नहीं होता। लाचारी औए बेबसी उनके चेहरे पर साफ़ झलक रही होती है, जिसे देख कर मन में सवाल उठ ही जाता है कि यह कैसा समाजवादी शासन है। शासन वाकई आम आदमी के लिए होता, तो आम आदमी यूं बेबस नज़र न आ रहा होता। महोत्सव की सफलता को सरकारी मशीनरी जिस तरह चिंतित नज़र आ रही है, उसे देख कर तो यही लगता है कि यह शासन ख़ास लोगों के लिए है। राजनेता हर काम में अपना राजनैतिक हित देखते हैं। शासन-सत्ता ख़ास लोगों के प्रयासों से ही मिलती है, तो वह आम आदमी की चिंता करें भी क्यूं?