बिना देखे ही हो गया ऐसा प्रेम, जो अमर हो गया

राजा रवि वर्मा द्वारा रचित नल-दमयन्ती की कृति।
राजा रवि वर्मा द्वारा रचित नल-दमयन्ती की कृति।

कहानी सतयुग की है, उस समय कुन्दनपुरी में भीम सिगर नाम के एक बड़े ही शक्तिशाली, दानशील व सत्यवादी राजा हुए, इनकी रानी का नाम अशोक सुंदरी था, जो श्रेष्ठ पतिव्रताओं में मानी जाती हैं, इनके तीन पुत्र दम, दान्त, दमन और एक दमयन्ती नाम की पुत्री थी। ‘दम’ का अपने मन पर पूर्ण रूप से अधिकार था। ‘दान्त’ के सामने समस्त ‘दैत्य’ झुकते थे। ‘दमन’ ने बाल्यावस्था में अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया था, इसी तरह उनकी पुत्री ‘दमयन्ती’ इतनी सुन्दर, सुशील और कीर्तिवान थी कि इन्द्र सहित समस्त देवता उससे विवाह करने के लिये आतुर थे।

सतयुग में ही निषध देश के राजा ‘प्रथम’ के यहाँ राजकुमार ‘नल’ ने जन्म लिया, जो महान राजा के रूप में प्रसिद्ध हुये। दमयन्ती के सौंदर्य के चर्चे राजा नल तक भी पहुंचने लगे, तो उनके हृदय में दमयन्ती के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया। एक दिन राजा नल ने अपने महल के उद्यान में भ्रमण कर रहे एक हंस को पकड़ लिया। घबराये हंसों ने कहा आप हंस को छोड़ देंगे, तो वह दमयन्ती के पास जाकर आपके गुणों का ऐसा वर्णन करेंगे कि वह आपको जरूर वर लेगी। नल ने हंस को छोड़ दिया, तो सब हंस उड़कर राजकुमारी दमयन्ती के पास पहुंच गए। दमयन्ती हंसों को देखते ही चहक उठी और उन्हें पकड़ने को दौड़ी। दमयन्ती जिस हंस को पकड़ती, वही हंस बोल उठता कि दमयन्ती निषध देश का नल बहुत सुन्दर है, मनुष्यों में उसके समान कोई नहीं है, यदि तुम उसकी पत्नी बन जाओ, तो तुम्हारा जन्म और रूप दोनों सफल हो जायेंगे। तुम स्त्रियों में रत्न हो, वैसे ही नल पुरुषों को भूषण है, ऐसा सुन कर दमयन्ती के हृदय में भी नल के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया और दमयन्ती ने हंसों से कहा कि तुम नल से भी ऐसी ही बात कहना।

दमयन्ती की आसक्ति इतनी बढ़ गई कि वह रात दिन नल का ही ध्यान करती रहती, जिससे शरीर दुर्बल हो गया। सखियों ने राजा तक संदेश पहुंचाया, तो राजा ने स्वयंवर आयोजित करने की घोषणा करते हुए सभी जगह निमन्त्रण भेज दिए। स्वयंवर का निमन्त्रण मिलते ही समस्त राजा ‘कुन्दनपुरी’ की ओर दौड़ पड़े। स्वर्ग से देवता चल दिए और राजा ‘नल’ ने भी स्वयंवर के लिये प्रस्थान कर दिया। देवताओं को भनक लग गई थी कि दमयन्ती प्रेम करती है और वह नल को ही वरमाला पहनाएगी। अन्य देवताओं के साथ इंद्र बीच रास्ते में ही राजा नल के पास पहुंच गये और बोले कि आप हमारा एक कार्य कर दीजिये, तो नल कहा कि बताइए, इस पर इंद्र ने कहा कि वचन दीजिये, तो नल ने वचन दे दिया, तब इंद्र ने कहा कि आप देवताओं की ओर से दूत बन कर दमयन्ती के पास जाईये और कहिये कि वे अपना वर देवताओं में से ही किसी एक को चुनें, इस पर नल ने कहा कि वे भी इसी प्रयोजन से पधारे हैं, ऐसे में उनका दूत बन कर जाना सही नहीं रहेगा, तो इंद्र ने कहा कि सुना है कि आप सत्य बोलते हैं और वचन के पक्के हैं, यह सुन कर नल दूत बन गये। इन्द्र ने राजा नल को वरदान दिया कि द्वारपाल आदि न देख सकेंगे।

दूत के रूप में राजा नल, दमयन्ती के महल में पहुँच गये। राजा नल ने दमयन्ती से अपना परिचय दिया और कहा कि मैं इन्द्र, वरुण, यम और अग्नि देवता का दूत बनकर आपके पास आया हूँ। देवगण आपसे विवाह करना चाहते हैं, आप भी देवगणों में से ही अपना ‘वर’ चुनें। दमयन्ती ने राजा नल से कहा कि मैं तो आपको अपना ‘वर’ मान चुकी हूँ। मैंने स्वयं को आपके चरणों में समर्पित कर दिया है और आप मुझे स्वीकार नहीं करेंगे, तो मैं प्राण त्याग दूंगी, लेकिन नल अपने कर्तव्य पर अडिग रहे और देवगणों के ऐश्वर्य व वैभव का वर्णन करते हुए दमयन्ती को समझाने का प्रयत्न करते रहे, पर दमयन्ती को स्वर्ग के ऐश्वर्य और वैभव ने प्रभावित नहीं किया। अंत में राजा नल ने कहा कि देवताओं को दरकिनार कर मनुष्य को वर चुनना उचित नहीं है। देवताओं को क्रोधित करने से मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है, यह सुनकर दमयन्ती डर गयी, फिर भी निर्णय बदलने को तैयार नहीं हुई। लौटकर देवताओं को राजा नल ने सब कुछ अक्षरशः बता दिया। स्वयंवर का शुभारंभ हुआ, तो चारों देवता राजा नल जैसा रूप धारण कर नल के पास ही बैठ गए। दमयन्ती वरमाला लेकर सभा में आयी और उसने एक समान पाँच पुरुषों को देखा तो वह ‘नल’ को न पहचान सकी। अन्त में उसने देवताओं की शरण में जाने का निश्चय किया। दमयन्ती कहने लगी कि हे परम-पूज्य देवगणों- आपको विदित ही है कि मैं पहले ही मन तथा वाणी से राजा नल को अपना पति परमेश्वर स्वीकार कर चुकी हूँ। राजा नल की प्राप्ति के लिये मैं तप और व्रत भी करती रही हूँ, यदि मैं मन, वचन और कर्म से पतिव्रता हूँ तो मुझे राजा नल के दर्शन करा दें, इस प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवताओं ने उसे ‘देवता’ और ‘मनुष्य’ में भेद करने की शक्ति प्रदान कर दी। शक्ति मिलते ही उसने देखा कि चार पुरुषों के शरीर पर न पसीना है, न धूल है, न उनके शरीर की ‘छाया’ पृथ्वी पर पड़ रही है, न पृथ्वी को स्पर्श कर रहे हैं, न उनकी माला के ‘पुष्प’ कुंभला रहे हैं, जबकि पाँचवे पुरुष के शरीर पर कुछ धूल थी, कुछ पसीना था, शरीर की छाया भी पृथ्वी पर पड़ रही थी, भूमि को स्पर्श भी कर रहा था और उसकी माला के पुष्प कुंभला गये थे, इससे दमयन्ती ने नल को पहचान लिया और उसने तुरन्त उनके कंठ में जयमाला डाल दी, इस प्रकार बिना देखे एक-दूसरे को अदभुत प्रेम करने वाले प्रेमियों का मिलन हो गया, पर न चाहते हुए भी वे कईयों के दुश्मन हो गये

स्वयंवर से लौटकर इन्द्र व अन्य देवता अपने लोकों को जा रहे थे, तभी मार्ग में कलयुग और द्वापर से भेंट हो गई। इन्द्र ने पूछा कलयुग कहा जा रहे हो? कलयुग ने कहा कि मैं दमयन्ती के स्वयंवर में उससे विवाह करने जा रहा हूँ, तो इन्द्र ने बताया कि स्वयंवर हो गया और दमयन्ती ने राजा नल को वर चुन लिया। आक्रोशित कलयुग ने द्वापर से कहा मैं अपने क्रोध को शान्त नहीं कर सकता, मैं नल के शरीर में निवास करूंगा और उसे राज्यच्युत कर दूंगा, जिससे वह दमयन्ती के साथ नहीं रह सकेगा, इसमें तुम भी मेरी सहायता करो। द्वापर ने कलयुग की बात स्वीकार ली। कलयुग और द्वापर नल की राजधानी में आकर बस गये। बारह वर्ष तक प्रतीक्षा में रहे कि नल में कोई दोष दिख जाए। एक दिन राजा नल संध्या के समय लघुशंका से निवृत होकर पैर धोए बिना ही आचमन कर संध्यावंदन करने बैठ गए, इस अपवित्र अवस्था का लाभ उठा कर कलयुग उनके शरीर में प्रवेश कर गया। कलयुग दूसरा रूप धारण कर पुष्कर के पास पहुंच गया और कहा कि तुम नल के साथ जुआ खेलो और जीतने के बाद निषध पर राज करो। पुष्कर ने राजा नल को जुआ खेलने की चुनौती दी, जो राजा नल को स्वीकार करनी पड़ी, इस बीच द्वापर ने पासे में प्रवेश कर लिया, जिससे नल सब कुछ हार गये और वस्त्रहीन अवस्था में पत्नी सहित उन्हें राज्य त्यागना पड़ा, इसके बाद दमयन्ती से भी उन्हें दूर जाना पड़ा और दोनों ने अलग-अलग रह कर घोर संकटों का सामना किया। कई वर्ष घनघोर संकट झेलने के बाद दोनों का पुनः मिलन हो सका, इसलिए नल-दमयन्ती की प्रेम कहानी अजर-अमर है।

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