रजिस्ट्रार के द्वारा आजम का अपरोक्ष रूप से सरकार पर हमला

रजिस्ट्रार के द्वारा आजम का अपरोक्ष रूप से सरकार पर हमला
रामपुर स्थित आजम खां का मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय।
रामपुर स्थित आजम खां का मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय।

रामपुर स्थित आजम खां का मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय एक बार फिर चर्चाओं में है, इस बार अपरोक्ष रूप से सपा सरकार पर ही निशाना साधा गया है। आजम खां स्वयं भी बयान दे चुके हैं, लेकिन इस बार विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार के माध्यम से हमला बोला गया है। रजिस्ट्रार ने प्रदेश के संस्कृति विभाग को पत्र लिख कर स्पष्ट कर दिया है कि वे शर्तों के साथ अनुदान नहीं लेंगे, साथ ही पूर्व में मिला अनुदान भी वापस कर देंगे।

मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ई.आर.ए. कुरैशी ने उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग के विशेष सचिव राम विशाल मिश्र को लिखे पत्र में कहा में कहा है कि शासनादेश संख्या 59/सी.एम.-165/चार-2015-221 (वी/13) संस्कृति अनुभाग लखनऊ दिनांक 13.05.2015 के संदर्भ में अवगत कराना है कि मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय एक निजी अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय है तथा इसे मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट द्वारा स्थापित किया गया है तथा ट्रस्ट ही इसे चलाता है। गत वर्षों में राजनैतिक द्वेष भावना के कारण उक्त विश्वविद्यालय के साथ बहुत ही अपमानजनक तथा इसे न चलने देने के लिये तथा इस विश्वविद्यालय को बन्द कराने सम्बंधी प्रयास हुये हैं, इसलिये यह विश्वविद्यालय ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहता है, जिससे यदि कोई राजनैतिक बदलाव हो, तो उसे उसके लिये प्रताड़ित किया जाये।

मीडिया में यह बात बार-बार आती रही है कि मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय पर उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी ख़ज़ाना लुटा दिया है। विदित रहे कि 2011 में मात्र रूपये 10 करोड़ की धनराशि विश्वविद्यालय की स्थापना से लेकर अब तक इस विश्वविद्यालय को मिला है तथा यह धनराशि निर्माण कार्य हेतु कार्यदायी संस्था सी.एस.डी.एस. उ0प्र0 जल निगम विभाग को दिया गया है, न कि विश्वविद्यालय को दिया है। इस विश्वविद्यालय ने अपनी सारी जमीनें, इमारतें विश्वविद्यालय के नाम आये चन्दे की धनराशि के माध्यम से बनवायी हैं।

जाने क्यों ऐसा बरताव किया जा रहा है, जो ऐसे राजनैतिक दलों और सरकारों ने किया, जो इस विश्वविद्यालय को बर्बाद करना चाहते थे। बार-बार संसकृति विभाग इस भव्य पाण्डाल के नाम को भ्रमित कर रहा है, और समाचार-पत्रों में उक्त पण्डाल को बनने के लिए केवल बदनामी का कारण बना हुआ है। बार-बार शासनादेश बदले जाते हैं और उनमें भव्य पण्डाल द्वारा सरकारी खजाना लूट लेने जैसी भाषा का प्रयोग होता है। यह पहले ही बताया जा चुका है कि यह एक अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्था है और आज की राजनैतिक समय में फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती है, पहले भी निवेदन किया गया था कि यदि किसी भी प्रकार से इस पर ज़िला प्रशासन का दखल रहेगा, तो यह पण्डाल राजनीति का अखाड़ा बन जायेगा, जिससे विश्वविद्यालय का माहौल खराब हो सकता है। आपको पहले भी लिखा गया है कि अनुदान शर्तों पर नहीं दिया जाता है, अनुदान दान स्वरूप् होता है और दानी ऐसी शर्तें नहीं लगाते हैं, जिससे दान लेने वाले परेशानी में पड़ जायें।

उक्त संबंध में जारी शासनादेश संख्या 59/सी.एम.-165/चार-2015-221(वि)/14, संस्कृति अनुभाग लखनऊ दिनांक 13.05.2015 के प्रथम पृष्ठ के बिन्दु संख्या 3 पर शासकीय प्रयोग का ज़िक्र किया गया है, साथ ही बिन्दु संख्या 4 पर भी जो भाषा प्रयोग में लायी गयी है, वह उचित नहीं है। इस प्रकार से बिन्दु संख्या 3 और 4 विश्वविद्यालय को मान्य नहीं हैं और न ही विश्वविद्यालय किसी भी प्रकार का कोई अनुदान शर्तों के अनुसार लेने को तेयार है। बल्कि शर्त यह होनी चाहिए कि जो पण्डाल बनेगा, वह केवल विश्वविद्यालय के उपयोग में आयेगा। इसके अलावा विश्वविद्यालय किसी भी शर्त को मानने के लिए तैयार नहीं है।

उपरोक्त के परिप्रेक्ष्य में विश्वविद्यालय का भव्य पण्डाल एक पहले बना हुआ है और मुस्लिम समुदाय विरोधी मानसिकता के अधिकारी जो गरीब मुस्लिम समुदाय के बच्चों को शिक्षित नहीं देखना चाहते, इस विश्वविद्यालय को बर्बाद कराना चाहते हैं। और ऐसे पदों पर बैठे कुछ अधिकारी जो विश्वविद्यालय को नुकसान पहुंचाने में सक्षम हैं, ऐसे अधिकारियों द्वारा केवल समय लम्बा करने की नियत से ऐसे हल्के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।

विश्वविद्यालय का भव्य पण्डाल किसी भी कीमत पर राजनैतिक दलों की रैलियों, जिला प्रशासन की गोष्ठियों तथा जो भी सरकारें हों, उन्हें इस विश्वविद्यालय को नुकसान पहुंचाने के लिए इस परिसर में घुसने नहीं दिया जायेगा, जो विश्वविद्यालय के भविष्य के लिए घातक हो। पहले भी इस संबंध में लिखा जा चुका है कि संस्कृति विभाग अपनी ओर से समाचार-पत्रों में, इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपनी मंशा बताते तथा विश्वविद्यालय की मंशा को प्रस्तुत करते हुए यह बतला दें कि विश्वविद्यालय कुछ अधिकारियों की मानसिकता की पूर्ति का साधन बनने के लिए तैयार नहीं है।

विश्वविद्यालय पुनः अनुरोध करता है कि इस प्रकार का कोई भी अनुदान स्वीकार नहीं है, जो इस विश्वविद्यालय के अस्तित्व को खतरे में डाल दे। यह विश्वविद्यालय इस बात पर बहुत संजीदगी से विचार कर रहा है कि मेडिकल कॉलेज की स्थापना हेतु जो धनराशि दस करोड़ मात्र दी गयी थी, उसे भी सरकारी कोष में वापस करने की अनुमति मिल जाये। एक बार पुनः आग्रह करते हैं कि प्रेस विज्ञप्ति जारी कर संस्कृति विभाग द्वारा बार-बार भ्रमित की गयी खबरों से जो विश्वविद्यालय को नुकसान पहुंचा है, उस पर ध्यान दिया जाये और पण्डाल की घोषणा को रदद कर दिया जाये। यहाँ बता दें कि आजम खां पूर्व में ही इस मुददे पर आपत्ति जता चुके हैं।

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