बेटे को मंत्री न बनाने पर कल्याण बिफरे, बगावत की चेतावनी

बेटे को मंत्री न बनाने पर कल्याण बिफरे, बगावत की चेतावनी
 कल्याण सिंह
कल्याण सिंह

इस संसार में पुरुष के लिए पुत्रमोह सबसे बड़े मोह में से एक माना गया है। इतिहास में पुत्रमोह की सैकड़ों रोचक और चर्चित कहानियाँ दर्ज हैं, लेकिन पुरुष उन कहानियों से सबक नहीं लेता। हाल-फिलहाल कल्याण सिंह पुत्रमोह की चपेट में हैं। बेटे को मंत्रिमंडल में स्थान न मिलने के कारण न सिर्फ गुस्से में हैं, बल्कि उन्होंने बगावत की चेतावनी भी दे दी है, जिससे भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन्हें साधने में जुटा हुआ है, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खराब छवि के चलते कल्याण सिंह के सुपुत्र राजवीर सिंह “राजू” को मंत्रिमंडल में लेने को तैयार नजर आ नहीं आ रहे हैं।

जमीन पर और संगठन में भले ही कभी मजबूत न रहे हों, पर अपने बड़बोलेपन से ही कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश की राजनीति के सिरमौर रहे हैं, वे दो बार विशाल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। राजनैतिक हालात बदले, तो धैर्य पूर्वक सामजंस्य बैठाने का प्रयास करने की जगह उन्होंने बड़बोलेपन के चलते ही वर्ष- 1999 में अटल बिहारी वाजपेई की सार्वजनिक आलोचना कर दी थी, जिससे भाजपा ने उन्हें न सिर्फ किनारे कर दिया था, बल्कि पार्टी से ही निकाल दिया था। हार कर कल्याण सिंह ने अपनी पार्टी बना ली, जिसे नाम दिया जनक्रांति पार्टी। वर्ष- 2002 के विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी को मात्र चार सीटें मिलीं, जिसमें बेटा और बहू भी सम्मलित थे, लेकिन अपनी स्थिति को दरकिनार कर वे यह कहते रहे कि भाजपा उनकी पार्टी के कारण हारी है।

भाजपा के हनुमान ने वर्ष- 2003 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया और बेटे राजवीर सिंह “राजू” और अपनी खास कुसुम राय को सरकार में मंत्री बनवा दिया, पर मुलायम को बीच में छोड़ वर्ष- 2004 के चुनावों से ठीक पहले कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी के साथ आ गये, लेकिन भाजपा का भला न करा सके, इसके बाद वर्ष- 2007 के विधान सभा चुनाव में कल्याण सिंह ने नेतृत्व किया, लेकिन भाजपा की सीटें और घट गईं। वर्ष- 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान कल्याण सिंह फिर समाजवादी पार्टी के साथ चले गये और जाने के बाद कहा कि ”भाजपा मरा हुआ सांप है, मैं इसे कभी गले नहीं लगाऊंगा।”

राजनीति में तमाम उतार-चढ़ाव आये। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में बदलाव हुआ, तो एक बार फिर कल्याण सिंह भाजपा में आ गये। जनवरी 2013 में लखनऊ में “अटल शंखनाद” नाम से रैली का आयोजन किया गया, जिसमें जनक्रांति पार्टी का भाजपा में विलय हुआ। उस रैली में भाषण के समय कल्याण सिंह रो पड़े थे और कहा था कि “संघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्कार मेरे रक्त की बूँद-बूँद में समाये हुए हैं, इसलिए मेरी इच्छा है कि जीवन-भर मैं भाजपा मे रहूं और जब जीवन का अंत होने को हो, तब मेरी इच्छा है कि मेरा शव भी भारतीय जनता पार्टी के झंडे में लिपट कर श्मशान भूमि जाए।”
पिछले लोकसभा चुनाव में कल्याण के सुपुत्र राजवीर सिंह “राजू” को एटा संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने टिकट दिया और वे जीत गये। सूत्रों का कहना है कि कल्याण अपने सुपुत्र को मंत्रिमंडल में सम्मलित कराना चाहते थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी मांग को दरकिनार करते हुए उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनवा दिया और हिमाचल का अतिरिक्त प्रभार भी दिला दिया, इस पर कल्याण मौन तो हो गये, पर सूत्रों का कहना है कि वे अंदर ही अंदर संगठन के माध्यम से प्रधानमंत्री पर दबाव बनाते रहे। कुछेक नेताओं ने उन्हें मंत्रिमंडल विस्तार में बेटे को स्थान दिलाने का आश्वासन दे रखा था, लेकिन 5 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विस्तार किया, पर उनके बेटे को मंत्रिमंडल में नहीं लिया, इस पर वे भड़क गये हैं। सूत्रों का कहना है कि उन्होंने नेतृत्व को बगावत करने के संकेत दे दिए हैं। उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर भाजपा पर कल्याण सिंह दबाव बनाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओम माथुर व संगठन महामंत्री सुनील बंसल कल्याण को मनाने के लिए राजभवन गये थे, लेकिन कल्याण बेटे को मंत्री बनवाने पर अड़े हुए हैं।
उधर सूत्रों का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि में कल्याण के सुपुत्र राजवीर सिंह “राजू” की छवि बहुत अच्छी नहीं है, जिससे वे अपने आस-पास भी नहीं फटकने देना चाहते। कल्याण और राजू भाजपा में रहते हुए उन लोगों को आगे बढ़ा रहे हैं, जो बगावत के दिनों में उनके साथ थे। भाजपा के मूल कार्यकर्ता को वे ज्यादा सम्मान नहीं देते। चुनाव के समय ब्रज क्षेत्र की उपाध्यक्ष एक महिला ने राजू पर गाली देने और अभद्रता करने का आरोप लगाया, साथ ही एटा लोकसभा क्षेत्र में सांसद राजू के लापता होने के पिछले दिनों पोस्टर लगाये गये थे। सूत्रों का कहना है कि यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में है, जिससे वे दूरी बनाये हुए हैं। अब विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि कल्याण सिंह पुत्रमोह को त्यागेंगे, या राज्यपाल का पद?

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