मनोकामना पूर्ण करता है सोमवार का प्रदोष व्रत

कलियुग में महाकल्याणकारी व्रत है प्रदोष का व्रत प्रदोष को तेरस व् त्रियोदशी भी कहते है 7 इस व्रत का कोई दिन निश्चित नहीं होता है, जिस दिन त्रियोदशी तिथि संध्या काल में पड़ती है उस दिन इस व्रत को रहा जाता है 7  मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेवजी कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। यूं तो सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है पर इन सभी में सोम प्रदोष व्रत का महत्व सर्वाधिक है क्योंकि शास्त्रों में सोमवार को भगवान शंकर का दिन माना गया है। 2 जुलाई को सोम प्रदोष व्रत है।


विधि – सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। ॐ नम: शिवाय मंत्र का जप करें।
व्रत कथा – एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका एक छोटा बेटा था। अपना व अपने बेटे के जीवन-यापन के लिए वह सुबह होते ही अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लडक़ा घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला । ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लडक़ा विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बन्दी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था, इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार उस ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, सोम प्रदोष व्रत करने से भगवान शंकर अपने अन्य भक्तों की मनोकामना भी पूरी करते हैं।

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