कश्मीरियों के ही विरुद्ध है धारा- 370

कश्मीरियों के ही विरुद्ध है धारा- 370

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार के अस्तित्व में आते ही कश्मीर और अनुच्छेद 370 पर बहस शुरू हो गई है। इस मुददे पर जैसी प्रतिक्रिया की आशा की जाती रही है, दोनों ही पक्षों से वैसी ही प्रतिक्रियायें आनी शुरू हो गई हैं, लेकिन प्रतिक्रियायें राष्ट्रवादी और अलगाववादी के रूप में देखी जा रही हैं। सामान्यतः अधिकाँश लोगों को कश्मीर के इतिहास और उसके भारत के साथ बने संबंध को लेकर बहुत अधिक जानकारी नहीं है। एक पक्ष स्वयं को राष्ट्रवादी मानते हुए कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय चाहता है और दूसरा पक्ष राजनैतिक लाभ के लिए कश्मीर को इसी स्थिति में रखने की बात करता नज़र आता है, इसलिए पहले यह समझना बेहद आवश्यक है कि कश्मीर का भारत से क्या रिश्ता है, यह रिश्ता कैसे बना है और भारत के अन्य राज्यों की तुलना में कश्मीर अलग कैसे है?

यूं तो कश्मीर भारत का अंग प्राचीन काल से ही है। नाम और सीमायें समय-समय पर परिवर्तित होती रही हैं। कश्मीर का उल्लेख दंत कथाओं, ग्रंथों और शास्त्रों में भी है, इसलिए आज़ादी के बाद की ही बात करते हैं। भारत का विभाजन होने के बाद जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और पाकिस्तान के बीच एक स्टैंडस्टिल ऐग्रीमेंट हुआ था, जिसे तोड़ते हुए पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर 1947 को घाटी पर आक्रमण कर दिया। एग्रीमेंट तोड़ने से नाराज महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को पूरे जम्मू-कश्मीर का भारत में बिना शर्त विलय कर दिया।

विलय के बाद भारत की सेना ने पाकिस्तानी सेना को रौंदना शुरू कर दिया, लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी और विवाद यूएनओ की सुरक्षा परिषद में भेज दिया, जिससे भारत या कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में ही रह गया और वह आज तक पाकिस्तान के ही कब्जे में है, जिसे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के रूप में जाना जाता है, जबकि विलय के अनुसार वह हिस्सा भी भारत का ही अंग है, पर उस हिस्से पर कब्जा छोड़ने की बजाये, पाकिस्तान उस हिस्से को भारत के विरुद्ध शुरू से ही इस्तेमाल करता आ रहा है। वहां शुरू से ही आतंकवादियों को ट्रेंड करने के कैंप चलाए जा रहे हैं, जिससे वह हिस्सा भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बन कर रह गया है।

आजादी के बाद भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के तहत तमाम रियासतों का विलय हुआ था, उन्हीं में से एक जम्मू-कश्मीर भी है। इस अधिनियम के अंतर्गत विलय होने के पश्चात आपत्ति करने का अधिकार रियासतदारों के साथ निवासियों को भी नहीं होता है, साथ ही वर्ष 1951 में जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा का निर्वाचन हुआ, तो उसने भी 6 फरवरी 1954 को विलय की पुष्टि कर दी थी, लेकिन अन्य रियासतों और कश्मीर की रियासत में एक बड़ा अंतर है। अन्य रियासतों से अलग कश्मीर को धारा 370 के अंतर्गत विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है, जिसके तहत यहाँ का संविधान अलग है, जो संविधान सभा ने 1956 में बना कर तैयार किया और जम्मू-कश्मीर की विधान सभा की स्वीकृति के बाद यह संविधान अनुच्छेद 370 के तहत 26 जनवरी 1957 को विधिवत लागू किया गया। इसी संविधान की धारा 3 में लिखा है कि जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा, साथ ही धारा 4 में उल्लेख है कि 15 अगस्त 1947 तक महाराजा के आधिपत्य में जितना भाग था, वह पूरा भाग जम्मू-कश्मीर और भारत का हिस्सा है। धारा 147 में स्पष्ट रूप से यह भी लिखा है कि धारा 3 व 4 को बदला ही नहीं जा सकता।

अब बात विवादित बिन्दुओं की करें, तो जम्मू-कश्मीर की सरकार संघ सूची के तहत बने कानूनों को कश्मीर में लागू करने के लिए बाध्य नहीं है। कश्मीर के मुख्यमंत्री को वजीर-ए-आजम व राज्यपाल को सदर-ए-रियासत कहा जाता है, जिससे प्रतीत होता है कि वह अलग राष्ट्र है। जम्मू-कश्मीर का नागरिक भारत का नागरिक है, लेकिन भारत के नागरिक जम्मू-कश्मीर के नागरिक नहीं हैं। भारत के राष्ट्रपति भी जम्मू-कश्मीर के नागरिक नहीं हैं, जबकि भारत के संविधान की मूल विशेषता यही है कि यहां इकहरी नागरिकता के साथ सभी के पास समान मूल अधिकार हैं और सब से अहम समानता का अधिकार है।

भारत सरकार किसी भी स्थिति में कश्मीर सरकार के विरुद्ध धारा 356 की कार्रवाई नहीं कर सकती। भारत के राष्ट्रपति के पास भी कश्मीर के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है। शहरी भूमि क़ानून (1976) कश्मीर में लागू नहीं होता। भारत के किसी अन्य राज्य के निवासी कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते हैं। वित्तीय आपातकाल लगाने की धारा 360 भी कश्मीर में नहीं लगाई जा सकती। भारतीय संविधान की पाँचवी अनुसूची के अंतर्गत वाली अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जन-जातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित और छठी अनुसूची जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन संबंधित धारायें कश्मीर में लागू नहीं होती। कश्मीर के हाई कोर्ट को सीमित शक्तियां प्राप्त हैं और वह कश्मीर के किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित नहीं कर सकता है और न ही सरकार के विरुद्ध कोई जनहित याचिका सुन सकता है, साथ ही कश्मीर में भारतीय सुप्रीम कोर्ट के अधिकार भी कार्य नहीं करते।

भारतीय संविधान के भाग 4 में राज्यों के नीति निर्देशक तत्व हैं और भाग 4(ए) में नागरिकों के मूल कर्तव्य बताये गए हैं, जो कश्मीर में लागू नहीं हुए हैं। कश्मीर की विधानसभा की अनुमति के बिना राज्य की सीमा को परिवर्तित करने से संबंधित कोई भी विधेयक भारत की संसद में पेश नहीं किया जा सकता। पाकिस्तान चले गए लोगों की नागरिकता से संबंधित भारतीय संविधान के प्रावधान कश्मीर के स्थायी निवासियों पर लागू नहीं होते। कश्मीर राज्य का अपना ध्वज भी अलग है, इसलिए तिरंगे के साथ किसी भी राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान वहां राष्ट्र द्रोह की श्रेणी में नहीं आता। कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है। जम्मू कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले, तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती है, जबकि वह पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले, तो पाकिस्तानी नागरिक को भी कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है। कश्मीर की महिलाओं पर शरियत कानून लागू है, जिसके अंतर्गत उनकी आज़ादी पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगे हुए हैं। कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं हैं। कश्मीर में अल्पसंख्यक (हिन्दू-सिख) को 16% आरक्षण नहीं मिलता। धारा 370 की बाधा के चलते ही कश्मीर में आरटीआई, आरटीई और सीएजी लागू नहीं किया जा सका है।

कश्मीर में लागू धारा 370 के कारण भारतीय संसद कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश और संचार से संबंधित विषयों पर ही कानून बना सकती है, ऐसे में धारा 370 पर बहस छेड़ने के साथ ही कश्मीरी और भारतीयों को खुल कर समझाना होगा कि धारा 370 के हटने से कश्मीरियों और भारतीयों को क्या लाभ और क्या हानि हो सकती है।

कश्मीरियों की बात करें, तो धारा 370 के चलते वहां महिलाओं और अल्पसंख्यकों की सामाजिक स्थिति बेहद खराब है। विकास की दृष्टि से भारत के अन्य राज्यों की तुलना में कश्मीर बहुत पीछे है। प्रत्येक कश्मीरी के मूल अधिकार बहुत ही सीमित हैं। निवेश शून्य होने जैसी स्थिति के चलते रोजगार के अवसर भी शून्य जैसे ही हैं, इसीलिए अधिकाँश लोग रोजी-रोटी के लिए परंपरागत कार्यों पर ही निर्भर हैं।

धारा 370 हटते ही कश्मीर राजनैतिक, सामाजिक, भौगोलिक और आर्थिक क्षेत्रों के साथ हर क्षेत्र में वैश्विक स्तर का विकास कर सकता है। भारतीय दृष्टि से बात करें, तो पूर्ण राज्य का दर्जा न होने के कारण कश्मीर पर हमेशा दुश्मन देश की गिद्ध दृष्टि जमी रहती है, जिससे भारत की संप्रुभता को खतरा बना रहता है, इसीलिए वहां पूर्ण शांति स्थापित नहीं हो पाती, जिसके दुष्परिणाम संपूर्ण भारत को समय-समय पर भुगतने पड़ते रहे हैं। कुल मिला कर भारत का ही नहीं, बल्कि कश्मीरी नागरिकों के हितों के लिए भी धारा 370 का हटना बेहद आवश्यक है, पर धारा 370 की आड़ में मुट्ठी भर लोग राजतन्त्र जैसा सुख भोग रहे हैं, वे इस धारा को आसानी से नहीं हटने देंगे, वे देश द्रोही ताकतों को उकसायेंगे। अशांति का माहौल उत्पन्न कर विश्व स्तर पर ऐसा संदेश देने का प्रयास करेंगे कि कश्मीरियों के साथ घनघोर अन्याय हो रहा है। धर्म के नाम पर भी लोगों को भड़काने का प्रयास करेंगे, इसीलिए धारा 370 हटाना आसान नहीं है, लेकिन भारत को धारा 370 हटाने की बलि कभी न कभी तो देनी ही पड़ेगी और कश्मीरियों व भारतीय गणराज्य की भलाई के लिए बलि देने का यही उचित समय है।

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